चितवनि चारु मार मनु हरनी। भावति हृदय जाति नहिं बरनी॥ कल कपोल श्रुति कुंडल लोला। चिबुक अधर सुंदर मृदु बोला॥2॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kand
चितवनि चारु मार मनु हरनी। भावति हृदय जाति नहिं बरनी॥
कल कपोल श्रुति कुंडल लोला। चिबुक अधर सुंदर मृदु बोला॥2॥
भावार्थ:
सुंदर चितवन (सारे संसार के मन को हरने वाले) कामदेव के भी मन को हरने वाली है। वह हृदय को बहुत ही प्यारी लगती है, पर उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। सुंदर गाल हैं, कानों में चंचल (झूमते हुए) कुंडल हैं। ठोड़ और अधर (होठ) सुंदर हैं, कोमल वाणी है॥2॥
English :
IAST :
Meaning :