चौकें भाँति अनेक पुराईं। सिंधुर मनिमय सहज सुहाईं॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kand
चौकें भाँति अनेक पुराईं। सिंधुर मनिमय सहज सुहाईं॥4॥
भावार्थ:
गजमुक्ताओं के सहज ही सुहावने अनेकों तरह के चौक पुराए॥4॥
English :
IAST :
Meaning :