जे श्रद्धा संबल रहित नहिं संतन्ह कर साथ। तिन्ह कहुँ मानस अगम अति जिन्हहि न प्रिय रघुनाथ॥38॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
दोहा 38| Dohas 38
जे श्रद्धा संबल रहित नहिं संतन्ह कर साथ।
तिन्ह कहुँ मानस अगम अति जिन्हहि न प्रिय रघुनाथ॥38॥
भावार्थ:-जिनके पास श्रद्धा का सहारा नहीं है, संतों का साथ नहीं है और जिनको श्री रघुनाथजी प्रिय नहीं हैं, उनके लिए यह मानस अत्यंत ही अगम (दुर्बोध) है। (अर्थात् श्रद्धा, सत्संग और भगवत्प्रेम के बिना कोई इसको नहीं पा सकता)॥38॥
ē śraddhā saṃbala rahita nahi saṃtanha kara sātha.
tinha kahuom mānasa agama ati jinhahi na priya raghunātha..38..
Those who lack provisions for the journey in the shape of piety, who do not enjoy the company of saints the Manasa is most inaccessible. And who have no love for the Lord of Raghus (Sri Rama).
जिसने भी इस दोहे का अर्थ लिखा है, कृपया पढे, समझे और फिर लिखे। अपनी अज्ञानता का प्रचार करके अनजाने में की गयी गलती अपराध की श्रेणी में में आती है। इससे सनातन संस्कृति के प्रति अश्रद्धा होने का डर रहता है।
जय श्रीसीताराम
क्षमा करें। ठीक किया गया। आपका आभार
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