नाथ एक संसउ बड़ मोरें। करगत बेदतत्त्व सबु तोरें॥ कहत सो मोहि लागत भय लाजा। जौं न कहउँ बड़ होइ अकाजा॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 44.4 | Caupāī 44.4
नाथ एक संसउ बड़ मोरें। करगत बेदतत्त्व सबु तोरें॥
कहत सो मोहि लागत भय लाजा। जौं न कहउँ बड़ होइ अकाजा॥4॥
भावार्थ:-हे नाथ! मेरे मन में एक बड़ा संदेह है, वेदों का तत्त्व सब आपकी मुट्ठी में है (अर्थात् आप ही वेद का तत्त्व जानने वाले होने के कारण मेरा संदेह निवारण कर सकते हैं) पर उस संदेह को कहते मुझे भय और लाज आती है (भय इसलिए कि कहीं आप यह न समझें कि मेरी परीक्षा ले रहा है, लाज इसलिए कि इतनी आयु बीत गई, अब तक ज्ञान न हुआ) और यदि नहीं कहता तो बड़ी हानि होती है (क्योंकि अज्ञानी बना रहता हूँ)॥4॥
nātha ēka saṃsau baḍa mōrēṃ. karagata bēdatatva sabu tōrēṃ..
kahata sō mōhi lāgata bhaya lājā. jau na kahauom baḍa hōi akājā..
-“A grave doubt haunts my mind, holy sir ! and the whole mystery of the Vedas stands revealed to you. I am afraid and ashamed to utter the doubt; and I lose a great opportunity if I keep it back.