राम चरन दृढ़ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग। सुमन माल जिमि कंठ ते गिरत न जानइ नाग॥10॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
चतुर्थ: सोपान | Descent 4th
श्री किष्किंधाकांड | Shri kishkindha-Kand
दोहा :
राम चरन दृढ़ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग।
सुमन माल जिमि कंठ ते गिरत न जानइ नाग॥10॥
भावार्थ:
श्री रामजी के चरणों में दृढ़ प्रीति करके बालि ने शरीर को वैसे ही (आसानी से) त्याग दिया जैसे हाथी अपने गले से फूलों की माला का गिरना न जाने॥10॥
English :
IAST :
Meaning :