लखन लखेउ भा अनरथ आजू। एहिं सनेह सब करब अकाजू॥ मागत बिदा सभय सकुचाहीं। जाइ संग बिधि कहिहि कि नाहीं॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
लखन लखेउ भा अनरथ आजू। एहिं सनेह सब करब अकाजू॥
मागत बिदा सभय सकुचाहीं। जाइ संग बिधि कहिहि कि नाहीं॥4॥
भावार्थ:
लक्ष्मण ने देखा कि आज (अब) अनर्थ हुआ। ये स्नेह वश काम बिगाड़ देंगी! इसलिए वे विदा माँगते हुए डर के मारे सकुचाते हैं (और मन ही मन सोचते हैं) कि हे विधाता! माता साथ जाने को कहेंगी या नहीं॥4॥
English :
IAST :
Meaning :