अस कहि बिहसि ताहि उर लाई। चलेउ सभाँ ममता अधिकाई॥ फमंदोदरी हृदयँ कर चिंता। भयउ कंत पर बिधि बिपरीता॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
पंचमः सोपान | Descent 5th
श्री सुंदरकाण्ड | Shri Sunderkand
चौपाई :
अस कहि बिहसि ताहि उर लाई। चलेउ सभाँ ममता अधिकाई॥
फमंदोदरी हृदयँ कर चिंता। भयउ कंत पर बिधि बिपरीता॥3॥
भावार्थ:
रावण ने ऐसा कहकर हँसकर उसे हृदय से लगा लिया और ममता बढ़ाकर (अधिक स्नेह दर्शाकर) वह सभा में चला गया। मंदोदरी हृदय में चिंता करने लगी कि पति पर विधाता प्रतिकूल हो गए॥3॥
English :
IAST :
Meaning :