एक बार प्रभु सुख आसीना। लछिमन बचन कहे छलहीना॥ सुर नर मुनि सचराचर साईं। मैं पूछउँ निज प्रभु की नाईं॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
तृतीय सोपान | Descent Third
श्री अरण्यकाण्ड | Shri Aranya-Kand
चौपाई :
एक बार प्रभु सुख आसीना। लछिमन बचन कहे छलहीना॥
सुर नर मुनि सचराचर साईं। मैं पूछउँ निज प्रभु की नाईं॥3॥
भावार्थ:
एक बार प्रभु श्री रामजी सुख से बैठे हुए थे। उस समय लक्ष्मणजी ने उनसे छलरहित (सरल) वचन कहे- हे देवता, मनुष्य, मुनि और चराचर के स्वामी! मैं अपने प्रभु की तरह (अपना स्वामी समझकर) आपसे पूछता हूँ॥3॥
English :
IAST :
Meaning :