छोरन ग्रंथि पाव जौं सोई। तब यह जीव कृतारथ होई॥ छोरत ग्रंथ जानि खगराया। बिघ्न नेक करइ तब माया॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
सप्तमः सोपानः | Descent 7th
श्री उत्तरकाण्ड | Shri Uttara Kanda
चौपाई :
छोरन ग्रंथि पाव जौं सोई। तब यह जीव कृतारथ होई॥
छोरत ग्रंथ जानि खगराया। बिघ्न नेक करइ तब माया॥3॥
भावार्थ:
यदि वह (विज्ञान रूपिणी बुद्धि) उस गाँठ को खोलने पावे, तब यह जीव कृतार्थ हो, परंतु हे पक्षीराज गरुड़जी! गाँठ खोलते हुए जानकर माया फिर अनेकों विघ्न करती है॥3॥
IAST :
Meaning :