तुम्हहि न सोचु सोहाग बल निज बस जानहु राउ। मन मलीन मुँह मीठ नृपु राउर सरल सुभाउ॥17॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
दोहा :
तुम्हहि न सोचु सोहाग बल निज बस जानहु राउ।
मन मलीन मुँह मीठ नृपु राउर सरल सुभाउ॥17॥
भावार्थ:
तुमको अपने सुहाग के (झूठे) बल पर कुछ भी सोच नहीं है, राजा को अपने वश में जानती हो, किन्तु राजा मन के मैले और मुँह के मीठे हैं! और आपका सीधा स्वभाव है (आप कपट-चतुराई जानती ही नहीं)॥17॥
English :
IAST :
Meaning :