मैं खल मल संकुल मति नीच जाति बस मोह। हरि जन द्विज देखें जरउँ करउँ बिष्नु कर द्रोह॥105 क॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
सप्तमः सोपानः | Descent 7th
श्री उत्तरकाण्ड | Shri Uttara Kanda
दोहा :
मैं खल मल संकुल मति नीच जाति बस मोह।
हरि जन द्विज देखें जरउँ करउँ बिष्नु कर द्रोह॥105 क॥
भावार्थ:
मैं दुष्ट, नीच जाति और पापमयी मलिन बुद्धि वाला मोहवश श्री हरि के भक्तों और द्विजों को देखते ही जल उठता और विष्णु भगवान् से द्रोह करता था॥105 (क)॥
IAST :
Meaning :