यह न कहिअ सठही हठसीलहि। जो मन लाइ न सुन हरि लीलहि॥ कहिअ न लोभिहि क्रोधिहि कामिहि। जो न भजइ सचराचर स्वामिहि॥2॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
सप्तमः सोपानः | Descent 7th
श्री उत्तरकाण्ड | Shri Uttara Kanda
चौपाई :
यह न कहिअ सठही हठसीलहि। जो मन लाइ न सुन हरि लीलहि॥
कहिअ न लोभिहि क्रोधिहि कामिहि। जो न भजइ सचराचर स्वामिहि॥2॥
भावार्थ:
यह कथा उनसे न कहनी चाहिए जो शठ (धूर्त) हों, हठी स्वभाव के हों और श्री हरि की लीला को मन लगाकर न सुनते हों। लोभी, क्रोधी और कामी को, जो चराचर के स्वामी श्री रामजी को नहीं भजते, यह कथा नहीं कहनी चाहिए॥2॥
IAST :
Meaning :