रघुपति अनुजहि आवत देखी। बाहिज चिंता कीन्हि बिसेषी॥ जनकसुता परिहरिहु अकेली। आयहु तात बचन मम पेली॥1॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
तृतीय सोपान | Descent Third
श्री अरण्यकाण्ड | Shri Aranya-Kand
चौपाई :
रघुपति अनुजहि आवत देखी। बाहिज चिंता कीन्हि बिसेषी॥
जनकसुता परिहरिहु अकेली। आयहु तात बचन मम पेली॥1॥
भावार्थ:
(इधर) श्री रघुनाथजी ने छोटे भाई लक्ष्मणजी को आते देखकर ब्राह्य रूप में बहुत चिंता की (और कहा-) हे भाई! तुमने जानकी को अकेली छोड़ दिया और मेरी आज्ञा का उल्लंघन कर यहाँ चले आए!॥1॥
English :
IAST :
Meaning :