सुधा समुद्र समीप बिहाई। मृगजलु निरखि मरहु कत धाई॥ करहु जाइ जा कहुँ जोइ भावा। हम तौ आजु जनम फलु पावा॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kand
सुधा समुद्र समीप बिहाई। मृगजलु निरखि मरहु कत धाई॥
करहु जाइ जा कहुँ जोइ भावा। हम तौ आजु जनम फलु पावा॥3॥
भावार्थ:
समीप आए हुए (भगवत्दर्शन रूप) अमृत के समुद्र को छोड़कर तुम (जगज्जननी जानकी को पत्नी रूप में पाने की दुराशा रूप मिथ्या) मृगजल को देखकर दौड़कर क्यों मरते हो? फिर (भाई!) जिसको जो अच्छा लगे, वही जाकर करो। हमने तो (श्री रामचन्द्रजी के दर्शन करके) आज जन्म लेने का फल पा लिया (जीवन और जन्म को सफल कर लिया)॥3॥
English :
IAST :
Meaning :