सोइ रावन कहुँ बनी सहाई। अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई॥ अवसर जानि बिभीषनु आवा। भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा॥1॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
पंचमः सोपान | Descent 5th
श्री सुंदरकाण्ड | Shri Sunderkand
चौपाई :
सोइ रावन कहुँ बनी सहाई। अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई॥
अवसर जानि बिभीषनु आवा। भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा॥1॥
भावार्थ:
रावण के लिए भी वही सहायता (संयोग) आ बनी है। मंत्री उसे सुना-सुनाकर (मुँह पर) स्तुति करते हैं। (इसी समय) अवसर जानकर विभीषणजी आए। उन्होंने बड़े भाई के चरणों में सिर नवाया॥1॥
English :
IAST :
Meaning :