समुझि राजसुख दुखित अराती। अवाँ अनल इव सुलगइ छाती॥ ससरल बचन नृप के सुनि काना। बयर सँभारि हृदयँ हरषाना॥4॥
Spread the Glory of Sri SitaRam!श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
Read More