कुंजर मनि कंठा कलित उरन्हि तुलसिका माल। बृषभ कंध केहरि ठवनि बल निधि बाहु बिसाल॥243॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kand
कुंजर मनि कंठा कलित उरन्हि तुलसिका माल।
बृषभ कंध केहरि ठवनि बल निधि बाहु बिसाल॥243॥
भावार्थ:
हृदयों पर गजमुक्ताओं के सुंदर कंठे और तुलसी की मालाएँ सुशोभित हैं। उनके कंधे बैलों के कंधे की तरह (ऊँचे तथा पुष्ट) हैं, ऐंड़ (खड़े होने की शान) सिंह की सी है और भुजाएँ विशाल एवं बल की भंडार हैं॥243॥
English :
IAST :
Meaning :