तब ते जीव भयउ संसारी। छूट न ग्रंथि न होइ सुखारी॥ श्रुति पुरान बहु कहेउ उपाई। छूट न अधिक अधिक अरुझाई॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
सप्तमः सोपानः | Descent 7th
श्री उत्तरकाण्ड | Shri Uttara Kanda
चौपाई :
तब ते जीव भयउ संसारी। छूट न ग्रंथि न होइ सुखारी॥
श्रुति पुरान बहु कहेउ उपाई। छूट न अधिक अधिक अरुझाई॥3॥
भावार्थ:
तभी से जीव संसारी (जन्मने-मरने वाला) हो गया। अब न तो गाँठ छूटती है और न वह सुखी होता है। वेदों और पुराणों ने बहुत से उपाय बतलाए हैं, पर वह (ग्रंथि) छूटती नहीं वरन अधिकाधिक उलझती ही जाती है॥3॥
IAST :
Meaning :