बिनु भंजेहुँ भव धनुषु बिसाला। मेलिहि सीय राम उर माला॥ अस बिचारि गवनहु घर भाई। जसु प्रतापु बलु तेजु गवाँई॥2॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kand
बिनु भंजेहुँ भव धनुषु बिसाला। मेलिहि सीय राम उर माला॥
अस बिचारि गवनहु घर भाई। जसु प्रतापु बलु तेजु गवाँई॥2॥
भावार्थ:
(इधर उनके रूप को देखकर सबके मन में यह निश्चय हो गया कि) शिवजी के विशाल धनुष को (जो संभव है न टूट सके) बिना तोड़े भी सीताजी श्री रामचन्द्रजी के ही गले में जयमाला डालेंगी (अर्थात दोनों तरह से ही हमारी हार होगी और विजय रामचन्द्रजी के हाथ रहेगी)। (यों सोचकर वे कहने लगे) हे भाई! ऐसा विचारकर यश, प्रताप, बल और तेज गँवाकर अपने-अपने घर चलो॥2॥
English :
IAST :
Meaning :