राम लखन सिय प्रीति सुहाई। बचन अगोचर किमि कहि जाई॥ खग मृग मगन देखि छबि होहीं। लिए चोरि चित राम बटोहीं॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
राम लखन सिय प्रीति सुहाई। बचन अगोचर किमि कहि जाई॥
खग मृग मगन देखि छबि होहीं। लिए चोरि चित राम बटोहीं॥4॥
भावार्थ:
श्री रामजी, लक्ष्मणजी और सीताजी की सुंदर प्रीति वाणी का विषय नहीं है (अर्थात अनिर्वचनीय है), अतः वह कैसे कही जा सकती है? पक्षी और पशु भी उस छबि को देखकर (प्रेमानंद में) मग्न हो जाते हैं। पथिक रूप श्री रामचन्द्रजी ने उनके भी चित्त चुरा लिए हैं॥4॥
English :
IAST :
Meaning :