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हनुमत्कृतश्रीरामस्तोत्रम् (श्रीमद्भागवतान्तर्गतम्) | Shri Ram Stotram by Hanuman

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हनुमत्कृतश्रीरामस्तोत्रम् (श्रीमद्भागवतान्तर्गतम्)

श्रीशुक उवाच
किम्पुरुषे वर्षे भगवन्तमादिपुरुषं
लक्ष्मणाग्रजं सीताभिरामं रामं
तच्चरणसन्निकर्षाभिरतः परमभागवतो
हनुमान् सह किम्पुरुषैरविरतभक्तिरुपास्ते ॥ १॥

आर्ष्टिषेणेन सह गन्धर्वैरनुगीयमानां
परमकल्याणीं भर्तृभगवत्कथां
समुपश‍ृणोति स्वयं चेदं गायति ॥ २॥

ॐ नमो भगवते उत्तमश्लोकाय,
नम आर्यलक्षणशीलव्रताय,
नम उपशिक्षितात्मन उपासितलोकाय,
नमः साधुवादनिकषणाय,
नमो ब्रह्मण्यदेवाय महापुरुषाय महाराजाय
नमः इति ॥ ३॥

यत्तद्विशुद्धानुभवमात्रमेकं
स्वतेजसा ध्वस्तगुणव्यवस्थम् ।
प्रत्यक्प्रशान्तं सुधियोपलम्भनं
ह्यनामरूपं निरहं प्रपद्ये ॥ ४॥

मर्त्यावतारस्त्विह मर्त्यशिक्षणं
रक्षोवधायैव न केवलं विभोः ।
कुतोऽन्यथा स्याद्रमतः स्व आत्मनः
सीताकृतानि व्यसनानीश्वरस्य ॥ ५॥

न वै स आत्माऽऽत्मवतां सुहृत्तमः
सक्तस्त्रिलोक्यां भगवान्वासुदेवः ।
न स्त्रीकृतं कश्मलमश्नुवीत
न लक्ष्मणं चापि विहातुमर्हति ॥ ६॥

न जन्म नूनं महतो न सौभगं
न वाङ् न बुद्धिर्नाकृतिस्तोषहेतुः ।
तैर्यद्विसृष्टानपि नो वनौकसश्चकार
सख्ये बत लक्ष्मणाग्रजः ॥ ७॥

सुरोऽसुरो वाप्यथ वानरो नरः
सर्वात्मना यः सुकृतज्ञमुत्तमम् ।
भजेत रामं मनुजाकृतिं हरिं
य उत्तराननयत्कोसलान् दिवमिति ॥ ८॥

इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
पञ्चमस्कन्धे जम्बूद्वीपवर्णनं नामैकोनविंशोऽध्यायान्तर्गतम्
हनुमत्कृतश्रीरामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

हनुमत्कृतश्रीरामस्तोत्रम् श्रीमद्भागवतान्तर्गतम्, Shri Ram Stotram by Hanuman


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Shiv

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