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देवी अपराध क्षमापन स्तोत्र अर्थ सहित | Devi Aparadha Kshamapana Stotram with Hindi English Meaning

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देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्

( देवी अपराध क्षमापन स्तोत्र अर्थ सहित )

 

न मत्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
* न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ॥१॥

na matraṃ no yantraṃ tadapi ca na jāne stutimaho
naa cāhvānaṃ dhyānaṃ tadapi ca na jāne stutikathāḥ ।
na jāne mudrāste tadapi ca na jāne vilapanaṃ
paraṃ jāne mātastvadanusaraṇaṃ kleśaharaṇam ॥1॥

माँ ! मैं न मन्त्र जानता हूँ, न यंत्र; अहो! मुझे स्तुति का भी ज्ञान नहीं है. न आवाहन का पता है, न ध्यान का. स्तोत्र और कथा की भी जानकारी नहीं है. न तो तुम्हारी मुद्राएँ जानता हूँ और न मुझे व्याकुल होकर विलाप करना हि आता है; परन्तु एक जानता हूँ, केवल तुम्हारा अनुसरण करना- तुम्हारे पीछे चलना, जो कि सब क्लेशों को समस्त दुःख विपत्तियों को हर लेने वाला है. 1

(O Mother) Neither Your Mantra, Nor Yantra (do I know); And Alas, Not even I know Your Stuti (Eulogy),
I do not know how to Invoke You through Dhyana (Meditation); (And Alas), Not even I know how to simply recite Your Glories (Stuti-Katha),
I do not know Your Mudras (to contemplate on You); (And Alas), Not even I know how to simply Cry for You,
However, one thing I know (for certain); By following You (somehow through rememberance however imperfectly) will take away all my Afflictions (from my Mind),

 

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् ।
तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥२॥

vidherajñānena draviṇaviraheṇālasatayā
vidheyāśakyatvāttava caraṇayoryā cyutirabhūt ।
tadetat kṣantavyaṃ janani sakaloddhāriṇi śive
kuputro jāyeta kvacidapi kumātā na bhavati ॥2॥

सब का उद्धार करने वाली कल्यान्मायी माता ! में पूजा की विधि नहीं जानता, मेरे ओआस धन का भी अभाव है, में स्वभा से भी आलसी हूँ तथा मुझसे ठीक-ठीक पूजा का सम्पादन भी नहीं हो सकता; इन सब कारणों से तुम्हारे चरणों की सेवा में जो त्रुटि हो गयी है, उसे क्षमा करना; क्योंकि कुपुत्र का होना संभव है, किन्तु कहीं भी कुमाता नहीं होती. 2

(O Mother) Due to Ignorance of the Vidhis (Injunctions of Worship), and due to lack of Wealth, as well as due to my Indolent (Lazy) nature,
(Since) It was not possible for me to serve Your Lotus Feet; there have been Failures on the performance of my duties (I admit that),
(But) All these are pardonable (by You), O Mother; because You are the Saviour of All, O Shivaa (Auspicious Mother),
There can be Kuputra (fallen disobedient son turning away from Mother), but there can never be Kumata (Mother turning away from son permanently),

 

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः ।
मदीयोऽयं त्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥३॥

pṛthivyāṃ putrāste janani bahavaḥ santi saralāḥ
paraṃ teṣāṃ madhye viralataralo’haṃ tava sutaḥ ।
madīyo’yaṃ tyāgaḥ samucitamidaṃ no tava śive
kuputro jāyeta kvacidapi kumātā na bhavati ॥3॥

माँ ! इस पृथ्वी पर तुम्हारे सीधे साधे पुत्र तो बहुत से हैं, किन्तु उन सब में मैं ही अत्यंत चपल तुम्हारा बालक हूँ मेरे जैसा चंचल कोई विरला हि होगा. शिवे मेरा जो यह त्याग हुआ है, यह तुम्हारे लिए कदापि उचित नहीं है; क्योकि संसार में कुपुत्र का होना संभव है, किन्तु कहीं भी कुमाता नहीं होती. ३

(O Mother) In this World, there are many many Sons of Yours who are Simple-minded,
However, among them I am a rare Son of Yours who is Restless,
Because of this only, it is not proper for You to forsake me O Shivaa (Auspicious Mother),
(Because) There can be Kuputra (fallen disobedient son turning away from Mother), but there can never be Kumata (Mother turning away from son permanently),

 

जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।
तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥४॥

jaganmātarmātastava caraṇasevā na racitā
na vā dattaṃ devi draviṇamapi bhūyastava mayā ।
tathāpi tvaṃ snehaṃ mayi nirupamaṃ yatprakuruṣe
kuputro jāyeta kvacidapi kumātā na bhavati ॥4॥

जगदम्ब ! माता, मैंने तुम्हारे चरणों की सेवा कभी नहीं की, देवि! तुम्हे अधिक धन भी समर्पित नहीं किया; तथापि मुझ जैसे अधम पर जो तुम अनुपम स्नेह करती हो, इसका कारण यही है कि संसार में कुपुत्र पैदा हो सकता है परन्तु कहीं भी कमाता नहीं होती. ४

O Jaganmata (Mother of the World), O Mother, I have never Served Your Lotus Feet,Neither have I offered, O Devi, abundant Wealth at Your Lotus Feet (during Worship),
Inspite of this, You have maintained Your Motherly Love towards me which is incomparable,
(Because) There can be Kuputra (fallen disobedient son turning away from Mother), but there can never be Kumata (Mother turning away from son permanently),

 

परित्यक्ता देवा विविधविधसेवाकुलतया
मया पञ्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि ।
इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम् ॥५॥

parityaktā devā vividhavidhasevākulatayā
mayā pañcāśīteradhikamapanīte tu vayasi ।
idānīṃ cenmātastava yadi kṛpā nāpi bhavitā
nirālambo lambodarajanani kaṃ yāmi śaraṇam ॥5॥

गणेश जी को जन्म देने वाली माता पार्वती! [अन्य देवताओं की आराधना करते समय ] मुझे नाना प्रकार की सेवाओं में व्यग्र रहना पड़ता था, इसलिए पचासी वर्ष से अधिक अवस्था हो जाने पर आइने देवताओं को छोड़ दिया है, अब उनकी सेवा-पूजा मुझसे नहीं हो पाती; अतएव उनसे कुछ भी सहायता मिलने की आशा नहीं है. इस समय यदि तुम्हारी कृपा नहीं होगी तो मैं अवलम्बरहित होकर किसकी शरण मैं जाउंगा. 5.

(O Mother) Letting go (i.e. Left or Never undertaking) the various Ritualistic Worship services of the Devas …
by me, more than Eighty Five years of my life has passed,
Even at this moment (nearing death), if Your Grace do not descend, O Mother (Who is) of the form of Bliss-Consciousness, …
Where will this Niralamba (one without any support) seek Refuge, O Lambodara Janani (Mother of Lambodara or Ganesha),

 

श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातङ्को रङ्को विहरति चिरं कोटिकनकैः ।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ ॥६॥

śvapāko jalpāko bhavati madhupākopamagirā
nirātaṅko raṅko viharati ciraṃ koṭikanakaiḥ ।
tavāparṇe karṇe viśati manuvarṇe phalamidaṃ
janaḥ ko jānīte janani japanīyaṃ japavidhau ॥6॥

माता अपर्णा ! तुम्हारे मन्त्र का एक अक्षर भी कान में पड़ जाय तो उसका फल यह होता है कि मुर्ख चांडाल भी मधुपाक के समान मधुर वाणी का उच्चारण करने वाला उत्तम वक्ता हो जाता है, दीन मनुष्य भी करोड़ों स्वर्णमुद्राओं से संपन्न हो चिरकाल तक निर्भय विहार करता रहता है. जब मन्त्र के एक अक्षर श्रवण का ऐसा फल है तो जो लोग विधि पूर्वक जप में लगे रहते हैं, उनके जप से प्राप्त होने वाला उत्तम फल कैसा होगा? इसको कौन मनुष्य जान सकता है. ६.

(O Mother) A Swapaka (a Dog-Eater or Chandala) (from whose mouth nothing much comes out in terms of good speech) becomes Jalpaka (Talkative) with Speech like a Madhupaka (from whose mouth good speech comes out like Honey) (by Your Grace),
A Ranka (Poor and Miserable) becomes Niratanka (Free from Fear) forever, and moves about having obtained Million Gold (by Your Grace),
O Aparna (another name of Devi Parvati), when Your Prayer (and Glory) enter one’s Ear (and sits in the Heart), such is the Result,
(Then) Who among men can know, O Mother, the destiny which Your Holy Japa can unfold?

 

चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपतिः ।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ॥७॥

citābhasmālepo garalamaśanaṃ dikpaṭadharo
jaṭādhārī kaṇṭhe bhujagapatihārī paśupatiḥ ।
kapālī bhūteśo bhajati jagadīśaikapadavīṃ
bhavāni tvatpāṇigrahaṇaparipāṭīphalamidam ॥7॥

भवानी ! जो अपने अंगों में चिता की राख-भभूत लपेटे रहते हैं, विष ही जिनका भोजन है, जो दिगंबरधारी ( नग्न रहने वाले ) हैं, मस्तक पर जटा और कंठ में नागराज वासुकि को हार के रूप में धारण करते हैं तथा जिनके हाथ में कपाल ( भिक्षापात्र ) शोभा पाता है, ऐसे भूतनाथ पशुपति भी जो एकमात्र ‘जगदीश की पदवी धारण करते हैं, इसका क्या कारण है? यह महत्त्व उन्हें कैसे मिला ; यह केवल तुम्हारे पाणिग्रहण की परिपाटी का फल है; तुम्हारे साथ विवाह होने से हि उनका महत्त्व बाद गया. 7.

(O Mother) (Lord Shankara), Who is smeared with Chitabhasma (Ashes from the Cremation Ground), Whose Food is the Poison, Whose Clothes are the Directions, …
Who carry Matted Hairs on His Head, Who wear the Garland of the king of Snakes around His Neck; (Inspite of all this He is called) Pashupati (The Lord of the Pashus or Living Beings),
He carries a Begging Bowl of Skull in His Hand but is worshipped as Bhutesha (The Lord of the Bhutas or Beings) and got the title of Jagadisha Eka (One Lord of the Universe), …
O Bhavani, all this is because of the result of Your Pani Grahana (Accepting Your Hand in Marriage),

 

न मोक्षस्याकाङ्क्षा भवविभववाञ्छापि च न मे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः ।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपतः ॥८॥

na mokṣasyākāṅkṣā bhavavibhavavāñchāpi ca na me
na vijñānāpekṣā śaśimukhi sukhecchāpi na punaḥ ।
atastvāṃ saṃyāce janani jananaṃ yātu mama vai
mṛḍānī rudrāṇī śiva śiva bhavānīti japataḥ ॥8॥

मुख में चन्द्रमा की शोभा धारण करने वाली माँ ! मुहे मोक्ष की इच्छा नहीं है, संसार के वैभव की अभिलाषा नहीं हैं; न विज्ञान की अपेक्षा है; न सुख की आकांक्षा; अतः तुमसे मेरी यही याचना है कि मेरा जन्म ‘मृडाणी, रुद्राणी, शिव, शिव, भवानी’ इन नामों का जप करते हुए बीते. 8

(O Mother) I do not have the desire for Moksha (Liberation); Neither have I the desire for Worldly Fortune,
Neither do I long for Worldly Knowledge, O Shashi Mukhi (The Moon-Faced One); I do not have the desire for enjoying the Worldly comforts again,
Henceforth I implore You, O Mother, May You direct my life towards (the rememberance of Your Names),
(The string of Your Holy Names) Mridani Rudrani Shiva Shiva Bhavani; May my future life be spent in performing Japa of Your Holy Names,

 

नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभिः ।
श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव ॥९॥

nārādhitāsi vidhinā vividhopacāraiḥ
kiṃ rukṣacintanaparairna kṛtaṃ vacobhiḥ ।
śyāme tvameva yadi kiñcana mayyanāthe
dhatse kṛpāmucitamamba paraṃ tavaiva ॥9॥

माँ श्यामा ! नाना प्रकार की पूजन सामग्रियों से कभी विधिपूर्वक तुम्हारी आराधना मुझसे न हो सकी. सदा कठोर भाव का चिंतन करने वाली मेरी वाणी ने कौन सा अपराध नहीं किया है! फिर भी तुम स्वयं ही प्रयत्न करके मुह अनाथ पर जो कुछ भी कृपा दृष्टि करती हो, माँ ! यह तुम्हारे हि योग्य है. तुम्हारे जैसी दयामयी माता ही मेरे जैसे कुपुत्र को भी आश्रय दे सकती है.9

(O Mother) I have not worshipped You as prescribed by tradition with various rituals,
(On the other hand) What rough thoughts did my mind not think and my speech utter?
O Shyama, inspite of this, if You indeed, to a little extent, to this orphan …
have extended Your Grace, O Supreme Mother, It indeed only becomes You (i.e. is possible for You),

 

आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि ।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति ॥१०॥

āpatsu magnaḥ smaraṇaṃ tvadīyaṃ
karomi durge karuṇārṇaveśi ।
naitacchaṭhatvaṃ mama bhāvayethāḥ
kṣudhātṛṣārtā jananīṃ smaranti ॥10॥

माता दुर्गे ! करुनासिंधु महेश्वरी ! मैं विपत्तियों में फंसकर आज जो तुम्हारा स्मरण करता हूँ, इसे मेरी शठता न मान लेना; क्योंकि भूख प्यास से पीड़ित बालक माता का ही स्मरण करते हैं. 10

(O Mother) I have sunk in Misfortunes and therefore remembering You now (which I never did before),
O Mother Durga, (You Who are) an Ocean of Compassion, …
(Therefore) do not think of me as false (and my invocation as pretence),
(Because) When children are afflicted with Hunger and Thirst, they naturally remember their Mother (only),

 

जगदम्ब विचित्रमत्र किं परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि ।
अपराधपरम्परापरं न हि माता समुपेक्षते सुतम् ॥११॥

jagadamba vicitramatra kiṃ
paripūrṇā karuṇāsti cenmayi ।
aparādhaparamparāparaṃ
na hi mātā samupekṣate sutam ॥11॥

जगदम्ब ! मुह पर जो तुम्हारी पूर्ण कृपा बनी हुई है, इसमें आश्चर्य की कौन सी बात है, पुत्र अपराध पर अपराध क्यों न करता जा रहा हो, फिर भी माता उसकी उपेक्षा नहीं करती. 11

O Jagadamba (Mother of the Universe), What is surprising in this!
The graceful Compassion of the (Blissful) Mother always remains fully filled,
(Because) Inspite of the son committing Mistakes after Mistakes,
The Mother never abandons the son,

 

मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि ।
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरु ॥१२॥

matsamaḥ pātakī nāsti pāpaghnī tvatsamā na hi ।
evaṃ jñātvā mahādevi yathāyogyaṃ tathā kuru ॥12॥

महादेवि! मेरे समान कोई पातकी नहीं है और तुम्हारे समान दूसरी कोई पापहारिणी नहीं है; ऐसा जानकार जो उचित जान पड़े, वह करो.12

(O Mother) There is no one as Fallen like me, and there is no one as Uplifting ( by removing Sins ) like You,
Considering thus, O Mahadevi, Please do whatever is proper (to save me).


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Shiv

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3 thoughts on “देवी अपराध क्षमापन स्तोत्र अर्थ सहित | Devi Aparadha Kshamapana Stotram with Hindi English Meaning

  • आकाश दुबे

    अच्छा लगा

    Reply
  • Mahesh j. Sadariya

    Help miljane ke baad ek message dvara donar ko suchit kare ki aap ki help hame mili he

    Reply

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