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श्री दुर्गाजी स्तुति संग्रह

मीनाक्षीपञ्चरत्नम् स्तोत्र हिंदी अंग्रेजी अर्थ सहित | Minakshi Pancharatnam Stotram Lyrics in Sanskrit English

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 मीनाक्षीपञ्चरत्नम् स्तोत्र हिंदी अंग्रेजी अर्थ सहित

 

उद्यद्भानुसहस्रकोटिसदृशां केयूरहारोज्ज्वलां विम्बोष्ठी
स्मितदन्तपङ्क्ति रुचिरां पीताम्बरालङ्कताम्।
विष्णुब्रह्मसुरेन्द्रसेवितपदां तत्त्वस्वरूपां शिवां
मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि सन्ततमहं कारुण्यवारांनिधिम्॥१॥

udyadbhānusahasrakoṭisadṛśāṃ keyūrahārojjvalāṃ vimboṣṭhī
smitadantapaṅkti rucirāṃ pītāmbarālaṅkatām।
viṣṇubrahmasurendrasevitapadāṃ tattvasvarūpāṃ śivāṃ
mīnākṣīṃ praṇato’smi santatamahaṃ kāruṇyavārāṃnidhim॥1॥

जो उदय होते हुए सहस्रकोटि सूर्यो के सदृश आभावाली हैं, केयूर और हार आदि आभूषणों से भव्य प्रतीत होती हैं, बिम्बाफल के समान अरुण ओठों वाली हैं, मधुर मुसकानयुक्त दन्तावलि से जो सुन्दरी मालूम होती हैं तथा पीताम्बर से अलंकृता हैं; ब्रह्मा, विष्णु आदि देवनायकों से सेवित चरणों वाली उन तत्त्वस्वरूपिणी कल्याणकारिणी करुणावरुणालया श्रीमीनाक्षीदेवी का मैं निरन्तर वन्दन करता हूँ॥१॥

I meditate on Devi Meenakshi Who is rising (in my mental vision) with the splendour of Thousand Million Suns, shining with Bracelets and Garlands (matching the splendour of the rising Suns),She is rising with a Smiling Face, (appearing beautiful) with Lips Red like Bimba Fruits, and having beautiful Rows of Teeth; She is adorned with shining Yellow Garments (which are again matching the splendour of the rising Suns),Vishnu, Brahma and the king of Suras (i.e. Indra Deva) are serving Her Lotus Feet; And Her Auspicious Form is of the essence of Eternal Consciousness (Tattva),(Seeing that vision) I Bow down again and again to Devi Meenakshi, Who is an Ocean of Compassion.

मुक्ताहारलसत्किरीटरुचिरां पूर्णेन्दुवक्त्रप्रभां
शिजन्नूपुरकिङ्किणीमणिधरां पद्मप्रभाभासुराम्।
सर्वाभीष्टफलप्रदां गिरिसुतां वाणीरमासेवितां
मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि सन्ततमहं कारुण्यवारांनिधिम्॥२॥

muktāhāralasatkirīṭarucirāṃ pūrṇenduvaktraprabhāṃ
śijannūpurakiṅkiṇīmaṇidharāṃ padmaprabhābhāsurām।
sarvābhīṣṭaphalapradāṃ girisutāṃ vāṇīramāsevitāṃ
mīnākṣīṃ praṇato’smi santatamahaṃ kāruṇyavārāṃnidhim॥2॥

जो मोती की लड़ियों से सुशोभित मुकुट धारण किये सुन्दर मालूम होती हैं, जिनके मुख की प्रभा पूर्णचन्द्र के समान है, जो झनकारते हुए नूपुर (पायजेब), किंकिणी (करधनी) तथा अनेकों मणियाँ धारण किये हुए हैं, कमल की-सी आभा से भासित होने वाली, सबको अभीष्ट फल देने वाली, सरस्वती और लक्ष्मी आदि से सेविता उन गिरिराजनन्दिनी करुणावरुणालया श्रीमीनाक्षीदेवी का मैं निरन्तर वन्दन करता हूँ॥२॥

(Within the splendour of Her Form of rising Sun is) Her Face shining with the splendour of a Full Moon; Her Crown shining with the splendour of the Diadem (adorning it); and Her Bosom shining with the splendour of the Garland of Pearls (decorating it),Her Lotus Feet decorated with jingling Anklets with Bells and Gems over them, are shining with the splendour of a Lotus (as if blossoming with the Million Rising Suns),(That Lotus Feet is the) Granter of all Wishes, belonging to the Daughter of the Mountain, Who is accompanied by Vaani (Devi Saraswati) and Ramaa (Devi Lakshmi),(Seeing that Lotus Feet) I Bow down again and again to Devi Meenakshi, Who is an Ocean of Compassion.

श्रीविद्यां शिववामभागनिलयां ह्रीङ्कारमन्त्रोज्ज्वलां
श्रीचक्राङ्कितबिन्दुमध्यवसतिं श्रीमत्सभानायिकाम्।
श्रीमत्षण्मुखविनराजजननीं श्रीमज्जगन्मोहिनी
मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि सन्ततमहं कारुण्यवारांनिधिम्॥३॥

śrīvidyāṃ śivavāmabhāganilayāṃ hrīṅkāramantrojjvalāṃ
śrīcakrāṅkitabindumadhyavasatiṃ śrīmatsabhānāyikām।
śrīmatṣaṇmukhavinarājajananīṃ śrīmajjaganmohinī
mīnākṣīṃ praṇato’smi santatamahaṃ kāruṇyavārāṃnidhim॥3॥

जो श्रीविद्या हैं, भगवान् शंकर के वामभाग में विराजमान हैं, ‘ह्रीं’ बीजमन्त्र से सुशोभिता हैं, श्रीचक्रांकित विन्दु के मध्य में निवास करती हैं तथा देवसभा की अधिनेत्री हैं, उन श्रीस्वामी कार्तिकेय और गणेशजी की माता जगन्मोहिनी करुणावरुणालया श्रीमीनाक्षीदेवी का मैं निरन्तर वन्दन करता हूँ॥३॥

(Behind the splendour of Her rising Form is rising the) Sri Vidya shining with the splendour of Hrimkara Mantras, where She is residing as the left-half of Shiva, within the Bindu, at the center of the Sri Chakra; and presiding over the assembly of Deities (in the Sri Chakra),She Who is the Mother of Shanmukha (Sri Muruga) and Vighnaraja (Sri Ganesha), is the Mother of the Universe, Enchanting all (by Her infinite Creations and Transformations),(Seeing Her form of Sri Vidya) I Bow down again and again to Devi Meenakshi, Who is an Ocean of Compassion.

श्रीमत्सुन्दरनायिकां भयहरं ज्ञानप्रदां निर्मला
श्यामाभां कमलासनाचिंतपदां नारायणस्यानुजाम्।
वीणावेणुमृदङ्गवाद्यरसिकां नानाविधामम्बिकां
मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि सन्ततमहं कारुण्यवारांनिधिम्॥४॥

śrīmatsundaranāyikāṃ bhayaharaṃ jñānapradāṃ nirmalā
śyāmābhāṃ kamalāsanāciṃtapadāṃ nārāyaṇasyānujām।
vīṇāveṇumṛdaṅgavādyarasikāṃ nānāvidhāmambikāṃ
mīnākṣīṃ praṇato’smi santatamahaṃ kāruṇyavārāṃnidhim॥4॥

जो अति सुन्दर स्वामिनी हैं, भयहारिणी हैं, ज्ञानप्रदायिनी हैं, निर्मला और श्यामला हैं, कमलासन श्रीब्रह्माजी द्वारा जिनके चरणकमल पूजे गये हैं तथा श्रीनारायण (कृष्णचन्द्र) की जो अनुजा (छोटी बहन) हैं; वीणा, वेणु, मृदंगादि वाद्यों की रसिका उन विचित्र लीलाविहारिणी करुणावरुणालया श्रीमीनाक्षीदेवी का मैं निरन्तर वन्दन करता हूँ॥४॥

(Even though Her infinite Creations and Transformations brings Fear) Seeing Her as the Beautiful Presiding Deity (as the Source of everything), takes away Fear, bestows Knowledge, and makes us Pure,(Taking meditative delight in) Her Dark Form, (visualizing) Her Feet being worshipped by the one seated on Lotus (i.e. Brahmadeva), (I worship Her), Who is the younger sister of Sri Narayana,She takes delight in various musical instruments like Veena, Venu (Flute) and Mridanga; and assuming various Forms as Mother (She plays Her play of Creations),(Seeing Her as the Source behind all) I Bow down again and again to Devi Meenakshi, Who is an Ocean of Compassion.

नानायोगिमुनीन्द्रहृत्सुवसतिं नानार्थसिद्धिप्रदां
नानापुष्पविराजिताङ्गियुगलां नारायणेनार्चिताम्।
नादब्रह्ममयीं परात्परतरां नानार्थतत्त्वात्मिकां
मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि सन्ततमहं कारुण्यवारांनिधिम्॥५॥

nānāyogimunīndrahṛtsuvasatiṃ nānārthasiddhipradāṃ
nānāpuṣpavirājitāṅgiyugalāṃ nārāyaṇenārcitām।
nādabrahmamayīṃ parātparatarāṃ nānārthatattvātmikāṃ
mīnākṣīṃ praṇato’smi santatamahaṃ kāruṇyavārāṃnidhim॥5॥

जो अनेकों योगिजन और मुनीश्वरों के हृदय में निवास करने वाली तथा नाना प्रकार के पदार्थों की प्राप्ति कराने वाली हैं, जिनके चरणयुगल विचित्र पुष्पों से सुशोभित हो रहे हैं, जो श्रीनारायण से पूजिता हैं तथा जो नादब्रह्ममयी, परे से भी परे और नाना पदार्थों की तत्त्वस्वरूपा हैं, उन करुणावरुणालया श्रीमीनाक्षीदेवी का मैं निरन्तर वन्दन करता हूँ॥५॥

Residing within the hearts of various great Yogis and Munis, She bestows various Siddhis (spiritual accomplishments),Her Lotus Feet adorned with various Flowers (of Devotion of Devotees) is adored by Narayana Himself (Who is fond of Pure Devotion),She is the embodiment of Nada Brahman, beyond all Existences, pervading everything as their innermost Soul (i.e. innermost Essence),(Meditating on Her within the heart) I Bow down again and again to Devi Meenakshi, Who is an Ocean of Compassion.

इति श्रीमच्छङ्कराचार्यकृतं मीनाक्षीपञ्चरत्नं सम्पूर्णम्।


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Shivangi

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