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इंटरनेट पर श्रीरामजी का सबसे बड़ा विश्वकोश | RamCharitManas Ramayana in Hindi English | रामचरितमानस रामायण हिंदी अनुवाद अर्थ सहित

श्रीमद् भागवत महापुराण अष्टम स्कन्ध

श्रीमद् भागवत महापुराण स्कन्ध 8 अध्याय 10

Spread the Glory of Sri SitaRam!

अध्यायः १०

अथ दशमोऽध्यायः

श्रीशुक उवाच
इति दानवदैतेया नाविन्दन्नमृतं नृप
युक्ताः कर्मणि यत्ताश्च वासुदेवपराङ्मुखाः १

श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्! यद्यपि दानवों और दैत्योंने बड़ी सावधानीसे समुद्रमन्थनकी चेष्टा की थी, फिर भी भगवान्से विमुख होनेके कारण उन्हें अमृतकी प्राप्ति नहीं हुई ।।१।।

साधयित्वामृतं राजन्पाययित्वा स्वकान्सुरान्
पश्यतां सर्वभूतानां ययौ गरुडवाहनः २

राजन्! भगवान्ने समुद्रको मथकर अमृत निकाला और अपने निजजन देवताओंको पिला दिया। फिर सबके देखते-देखते वे गरुडपर सवार हुए और वहाँसे चले गये ||२||

सपत्नानां परामृद्धिं दृष्ट्वा ते दितिनन्दनाः
अमृष्यमाणा उत्पेतुर्देवान्प्रत्युद्यतायुधाः ३

जब दैत्योंने देखा कि हमारे शत्रओंको तो बड़ी सफलता मिली तब वे उनकी बढती सह न सके। उन्होंने तुरंत अपने हथियार उठाये और देवताओंपर धावा बोल दिया ।।३।।

ततः सुरगणाः सर्वे सुधया पीतयैधिताः
प्रतिसंयुयुधुः शस्त्रैर्नारायणपदाश्रयाः ४

इधर देवताओंने एक तो अमृत पीकर विशेष शक्ति प्राप्त कर ली थी और दूसरे उन्हें भगवान्के चरणकमलोंका आश्रय था ही। बस, वे भी अपने अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित हो दैत्योंसे भिड़ गये ||४||

तत्र दैवासुरो नाम रणः परमदारुणः
रोधस्युदन्वतो राजंस्तुमुलो रोमहर्षणः ५

परीक्षित्! क्षीरसागरके तटपर बड़ा ही रोमांचकारी और अत्यन्त भयंकर संग्राम हुआ। देवता और दैत्योंकी वह घमासान लड़ाई ही ‘देवासुर-संग्राम’ के नामसे कही जाती है ।।५।।

तत्रान्योन्यं सपत्नास्ते संरब्धमनसो रणे
समासाद्यासिभिर्बाणैर्निजघ्नुर्विविधायुधैः ६

दोनों ही एक-दूसरेके प्रबल शत्रु हो रहे थे, दोनों ही क्रोधसे भरे हुए थे। एक-दूसरेको आमने-सामने पाकर तलवार, बाण और अन्य अनेकानेक अस्त्र-शस्त्रोंसे परस्पर चोट पहँचाने लगे ।।६।।

शङ्खतूर्यमृदङ्गानां भेरीडमरिणां महान्
हस्त्यश्वरथपत्तीनां नदतां निस्वनोऽभवत् ७

उस समय लड़ाईमें शङ्ख, तुरही, मृदंग, नगारे और डमरू बड़े जोरसे बजने लगे; हाथियोंकी चिग्घाड़, घोड़ोंकी हिनहिनाहट, रथोंकी घरघराहट और पैदल सेनाकी चिल्लाहटसे बड़ा कोलाहल मच गया ||७||

रथिनो रथिभिस्तत्र पत्तिभिः सह पत्तयः
हया हयैरिभाश्चेभैः समसज्जन्त संयुगे ८

रणभूमिमें रथियोंके साथ रथी, पैदलके साथ पैदल, घुड़सवारोंके साथ घुड़सवार एवं हाथीवालोंके साथ हाथीवाले भिड़ गये ।।८।।
उष्ट्रैः केचिदिभैः केचिदपरे युयुधुः खरैः
केचिद्गौरमुखैरृक्षैर्द्वीपिभिर्हरिभिर्भटाः ९

उनमेंसे कोईकोई वीर ऊँटोंपर, हाथियोंपर और गधोंपर चढ़कर लड़ रहे थे तो कोई-कोई गौरमग, भालू, बाघ और सिंहोंपर ||९||

गृध्रैः कङ्कैर्बकैरन्ये श्येनभासैस्तिमिङ्गिलैः
शरभैर्महिषैः खड्गैर्गोवृषैर्गवयारुणैः १०

कोई-कोई सैनिक गिद्ध, कंक, बगुले, बाज और भास पक्षियोंपर चढ़े हुए थे तो बहुत-से तिमिङ्गिल मच्छ, शरभ, भैंसे, गैंडे, बैल, नीलगाय और जंगली साँड़ोंपर सवार थे ।।१०।।

शिवाभिराखुभिः केचित्कृकलासैः शशैर्नरैः
बस्तैरेके कृष्णसारैर्हंसैरन्ये च सूकरैः ११

किसी-किसीने सियारिन, चूहे, गिरगिट और खरहोंपर ही सवारी कर ली थी तो बहुत-से मनुष्य, बकरे, कृष्णसार मृग, हंस और सूअरोंपर चढ़े थे ।।११।।

अन्ये जलस्थलखगैः सत्त्वैर्विकृतविग्रहैः
सेनयोरुभयो राजन्विविशुस्तेऽग्रतोऽग्रतः १२

इस प्रकार जल, स्थल एवं आकाशमें रहनेवाले तथा देखने में भयंकर शरीरवाले बहुत-से प्राणियोंपर चढ़कर कई दैत्य दोनों सेनाओंमें आगे-आगे घुस गये ।।१२।।

चित्रध्वजपटै राजन्नातपत्रैः सितामलैः
महाधनैर्वज्रदण्डैर्व्यजनैर्बार्हचामरैः १३

वातोद्धूतोत्तरोष्णीषैरर्चिर्भिर्वर्मभूषणैः
स्फुरद्भिर्विशदैः शस्त्रैः सुतरां सूर्यरश्मिभिः १४

देवदानववीराणां ध्वजिन्यौ पाण्डुनन्दन
रेजतुर्वीरमालाभिर्यादसामिव सागरौ १५

परीक्षित्! उस समय रंग-बिरंगी पताकाओं, स्फटिक मणिके समान श्वेत निर्मल छत्रों, रत्नोंसे जड़े हुए दण्डवाले बहुमूल्य पंखों, मोरपंखों, चँवरों और वायुसे उड़ते हुए दुपट्टों, पगड़ी, कलँगी, कवच, आभूषण तथा सूर्यकी किरणोंसे अत्यन्त दमकते हुए उज्ज्वल शस्त्रों एवं वीरोंकी पंक्तियोंके कारण देवता और असुरोंकी सेनाएँ ऐसी शोभायमान हो रही थीं, मानो जल-जन्तुओंसे भरे हुए दो महासागर लहरा रहे हों ।।१३-१५||

वैरोचनो बलिः सङ्ख्ये सोऽसुराणां चमूपतिः
यानं वैहायसं नाम कामगं मयनिर्मितम् १६

परीक्षित्! रणभूमिमें दैत्योंके सेनापति विरोचनपुत्र बलि मय दानवके बनाये हुए वैहायस नामक विमानपर सवार हुए। वह विमान चलानेवालेकी जहाँ इच्छा होती थी, वहीं चला जाता था ।।१६।।

सर्वसाङ्ग्रामिकोपेतं सर्वाश्चर्यमयं प्रभो
अप्रतर्क्यमनिर्देश्यं दृश्यमानमदर्शनम् १७

युद्धकी समस्त सामग्रियाँ उसमें सुसज्जित थीं। परीक्षित्! वह इतना आश्चर्यमय था कि कभी दिखलायी पड़ता तो कभी अदृश्य हो जाता। वह इस समय कहाँ है—जब इस बातका अनुमान भी नहीं किया जा सकता था तब बतलाया तो कैसे जा सकता था ।।१७||

आस्थितस्तद्विमानाग्र्यं सर्वानीकाधिपैर्वृतः
बालव्यजनछत्राग्र्यै रेजे चन्द्र इवोदये १८

उसी श्रेष्ठ विमानपर राजा बलि सवार थे। सभी बडे-बडे सेनापति उनको चारों ओरसे घेरे हए थे। उनपर श्रेष्ठ चमर डुलाये जा रहे थे और छत्र तना हुआ था। उस समय बलि ऐसे जान पड़ते थे, जैसे उदयाचलपर चन्द्रमा ।।१८।।

तस्यासन्सर्वतो यानैर्यूथानां पतयोऽसुराः
नमुचिः शम्बरो बाणो विप्रचित्तिरयोमुखः १९

द्विमूर्धा कालनाभोऽथ प्रहेतिर्हेतिरिल्वलः
शकुनिर्भूतसन्तापो वज्रदंष्ट्रो विरोचनः २०

हयग्रीवः शङ्कुशिराः कपिलो मेघदुन्दुभिः
तारकश्चक्रदृक्शुम्भो निशुम्भो जम्भ उत्कलः २१

अरिष्टोऽरिष्टनेमिश्च मयश्च त्रिपुराधिपः
अन्ये पौलोमकालेया निवातकवचादयः २२

उनके चारों ओर अपने-अपने विमानोंपर सेनाकी छोटी-छोटी टुकड़ियोंके स्वामी नमुचि, शम्बर, बाण, विप्रचित्ति, अयोमुख, द्विमूर्धा, कालनाभ, प्रहेति, हेति, इल्वल, शकुनि, भूतसन्ताप, वज्रदंष्ट्र, विरोचन, हयग्रीव, शंकुशिरा, कपिल, मेघदन्दभि, तारक, चक्राक्ष, शुम्भ, निशुम्भ, जन्म, उत्कल, अरिष्ट, अरिष्टनेमि, त्रिपुराधिपति मय, पौलोम कालेय और निवातकवच आदि स्थित थे ||१९-२२।।

अलब्धभागाः सोमस्य केवलं क्लेशभागिनः
सर्व एते रणमुखे बहुशो निर्जितामराः २३

ये सब-के-सब समुद्रमन्थनमें सम्मिलित थे। परन्तु इन्हें अमृतका भाग नहीं मिला, केवल क्लेश ही हाथ लगा था। इन सब असुरोंने एक नहीं, अनेक बार युद्धमें देवताओंको पराजित किया था ।।२३।।

सिंहनादान्विमुञ्चन्तः शङ्खान्दध्मुर्महारवान्
दृष्ट्वा सपत्नानुत्सिक्तान्बलभित्कुपितो भृशम् २४

इसलिये वे बड़े उत्साहसे सिंहनाद करते हुए अपने घोर स्वरवाले शंख बजाने लगे। इन्द्रने देखा कि हमारे शत्रुओंका मन बढ़ रहा है, ये मदोन्मत्त हो रहे हैं; तब उन्हें बड़ा क्रोध आया ||२४||

ऐरावतं दिक्करिणमारूढः शुशुभे स्वराट्
यथा स्रवत्प्रस्रवणमुदयाद्रि महर्पतिः २५

वे अपने वाहन ऐरावत नामक दिग्गजपर सवार हुए। उसके कपोलोंसे मद बह रहा था। इसलिये इन्द्रकी ऐसी शोभा हुई, मानो भगवान् सूर्य उदयाचलपर आरूढ़ हों और उससे अनेकों झरने बह रहे हों ।।२५।।

तस्यासन्सर्वतो देवा नानावाहध्वजायुधाः
लोकपालाः सहगणैर्वाय्वग्निवरुणादयः २६

इन्द्रके चारों ओर अपने-अपने वाहन, ध्वजा और आयुधोंसे युक्त देवगण एवं अपने-अपने गणोंके साथ वायु, अग्नि, वरुण आदि लोकपाल हो लिये ।।२६।।

तेऽन्योन्यमभिसंसृत्य क्षिपन्तो मर्मभिर्मिथः
आह्वयन्तो विशन्तोऽग्रे युयुधुर्द्वन्द्वयोधिनः २७

दोनों सेनाएँ आमने-सामने खड़ी हो गयीं। दो-दोकी जोड़ियाँ बनाकर वे लोग लड़ने लगे। कोई आगे बढ़ रहा था, तो कोई नाम ले-लेकर ललकार रहा था। कोई-कोई मर्मभेदी वचनोंके द्वारा अपने प्रतिद्वन्द्वीको धिक्कार रहा था ।।२७।।

युयोध बलिरिन्द्रेण तारकेण गुहोऽस्यत
वरुणो हेतिनायुध्यन्मित्रो राजन्प्रहेतिना २८

– बलि इन्द्रसे, स्वामिकार्तिक तारकासुरसे, वरुण हेतिसे और मित्र प्रहेतिसे भिड़ गये ।।२८।।

यमस्तु कालनाभेन विश्वकर्मा मयेन वै
शम्बरो युयुधे त्वष्ट्रा सवित्रा तु विरोचनः २९

यमराज कालनाभसे, विश्वकर्मा मयसे, शम्बरासुर त्वष्टासे तथा सविता विरोचनसे लड़ने लगे ।।२९।।

अपराजितेन नमुचिरश्विनौ वृषपर्वणा
सूर्यो बलिसुतैर्देवो बाणज्येष्ठैः शतेन च ३०

नमुचि अपराजितसे, अश्विनीकुमार वृषपर्वासे तथा सूर्यदेव बलिके बाण आदि सौ पुत्रोंसे युद्ध करने लगे ||३०||

राहुणा च तथा सोमः पुलोम्ना युयुधेऽनिलः
निशुम्भशुम्भयोर्देवी भद्र काली तरस्विनी ३१

राहके साथ चन्द्रमा और पुलोमाके साथ वायुका युद्ध हुआ। भद्रकालीदेवी निशुम्भ और शुम्भपर झपट पड़ीं ।।३१।।

वृषाकपिस्तु जम्भेन महिषेण विभावसुः
इल्वलः सह वातापिर्ब्रह्मपुत्रैररिन्दम ३२

परीक्षित्! जम्भासुरसे महोदवजीकी, महिषासुरसे अग्निदेवकी और वातापि तथा इल्वलसे ब्रह्माके पुत्र मरीचि आदिकी ठन गयी ||३२||

कामदेवेन दुर्मर्ष उत्कलो मातृभिः सह
बृहस्पतिश्चोशनसा नरकेण शनैश्चरः ३३

दुर्मर्षकी कामदेवसे, उत्कलकी मातृगणोंसे, शुक्राचार्यकी बृहस्पतिसे और नरकासुरकी शनैश्चरसे लड़ाई होने लगी ||३३||

मरुतो निवातकवचैः कालेयैर्वसवोऽमराः
विश्वेदेवास्तु पौलोमै रुद्रा ः! क्रोधवशैः सह ३४

निवातकवचोंके साथ मरुद्गण, कालेयोंके साथ वसुगण, पौलोमोंके साथ विश्वदेवगण तथा क्रोधवशोंके साथ रुद्रगणका संग्राम होने लगा ।।३४।।

त एवमाजावसुराः सुरेन्द्रा द्वन्द्वेन संहत्य च युध्यमानाः
अन्योन्यमासाद्य निजघ्नुरोजसा जिगीषवस्तीक्ष्णशरासितोमरैः ३५

इस प्रकार असुर और देवता रणभूमिमें द्वन्द्व युद्ध और सामूहिक आक्रमणद्वारा एकदूसरेसे भिड़कर परस्पर विजयकी इच्छासे उत्साहपूर्वक तीखे बाण, तलवार और भालोंसे प्रहार करने लगे। वे तरह-तरहसे युद्ध कर रहे थे ।।३५।।

भुशुण्डिभिश्चक्रगदर्ष्टिपट्टिशैः शक्त्युल्मुकैः प्रासपरश्वधैरपि
निस्त्रिंशभल्लैः परिघैः समुद्गरैः सभिन्दिपालैश्च शिरांसि चिच्छिदुः ३६

भुशुण्डि, चक्र, गदा, ऋष्टि, पट्टिश, शक्ति, उल्मक, प्रास, फरसा, तलवार, भाले, मुदगर, परिघ और भिन्दिपालसे एक-दूसरेका सिर काटने लगे ||३६।।

गजास्तुरङ्गाः सरथाः पदातयः सारोहवाहा विविधा विखण्डिताः
निकृत्तबाहूरुशिरोधराङ्घ्रयश्छिन्नध्वजेष्वासतनुत्रभूषणाः ३७

उस समय अपने सवारों के साथ हाथी, घोड़े, रथ आदि अनेकों प्रकारके वाहन और पैदल सेना छिन्न-भिन्न होने लगी। किसीकी भुजा, किसीकी जङ्घा, किसीकी गरदन और किसीके पैर कट गये तो किसी-किसीकी ध्वजा, धनुष, कवच और आभूषण ही टुकड़े-टुकड़े हो गये ।।३७।।

तेषां पदाघातरथाङ्गचूर्णितादायोधनादुल्बण उत्थितस्तदा
रेणुर्दिशः खं द्युमणिं च छादयन्न्यवर्ततासृक्स्रुतिभिः परिप्लुतात् ३८

उनके चरणोंकी धमक और रथके पहियोंकी रगड़से पृथ्वी खुद गयी। उस समय रणभूमिसे ऐसी प्रचण्ड धूल उठी कि उसने दिशा, आकाश और सूर्यको भी ढक दिया। परन्तु थोड़ी ही देरमें खूनकी धारासे भूमि आप्लावित हो गयी और कहीं धूलका नाम भी न रहा ।।३८।।

शिरोभिरुद्धूतकिरीटकुण्डलैः संरम्भदृग्भिः परिदष्टदच्छदैः
महाभुजैः साभरणैः सहायुधैः सा प्रास्तृता भूः करभोरुभिर्बभौ ३९

तदनन्तर लड़ाईका मैदान कटे हुए सिरोंसे भर गया। किसीके मुकुट और कुण्डल गिर गये थे, तो किसीकी आँखोंसे क्रोधकी मुद्रा प्रकट हो रही थी। किसी-किसीने अपने दाँतोंसे होंठ दबा रखा था। बहुतोंकी आभूषणों और शस्त्रोंसे सुसज्जित लंबी-लंबी भुजाएँ कटकर गिरी हुई थीं और बहुतोंकी मोटी-मोटी जाँघे कटी हुई पड़ी थीं। इस प्रकार वह रणभूमि बड़ी भीषण दीख रही थी ।।३९।।

कबन्धास्तत्र चोत्पेतुः पतितस्वशिरोऽक्षिभिः
उद्यतायुधदोर्दण्डैराधावन्तो भटान्मृधे ४०

तब वहाँ बहुत-से धड़ अपने कटकर गिरे हुए सिरोंके नेत्रोंसे देखकर हाथों में हथियार उठा वीरोंकी ओर दौड़ने और उछलने लगे ।।४०।।

बलिर्महेन्द्रं दशभिस्त्रिभिरैरावतं शरैः
चतुर्भिश्चतुरो वाहानेकेनारोहमार्च्छयत् ४१

राजा बलिने दस बाण इन्द्रपर, तीन उनके वाहन ऐरावतपर, चार ऐरावतके चार चरणरक्षकोंपर और एक मुख्य महावतपर-इस प्रकार कुल अठारह बाण छोड़े ।।४१।।

स तानापततः शक्रस्तावद्भिः शीघ्रविक्रमः
चिच्छेद निशितैर्भल्लैरसम्प्राप्तान्हसन्निव ४२

इन्द्रने देखा कि बलिके बाण तो हमें घायल करना ही चाहते हैं। तब उन्होंने बड़ी फुर्तीसे उतने ही तीखे भल्ल नामक बाणोंसे उनको वहाँतक पहँचनेके पहले ही हँसते-हँसते काट डाला ।।४२।।

तस्य कर्मोत्तमं वीक्ष्य दुर्मर्षः शक्तिमाददे
तां ज्वलन्तीं महोल्काभां हस्तस्थामच्छिनद्धरिः ४३

इन्द्रकी यह प्रशंसनीय फुर्ती देखकर राजा बलि और भी चिढ़ गये। उन्होंने एक बहुत बड़ी शक्ति, जो बड़े भारी लूकेके समान जल रही थी, उठायी। किन्तु अभी वह उनके हाथमें ही थी-छुटने नहीं पायी थी कि इन्द्रने उसे भी काट डाला ।।४३।।

ततः शूलं ततः प्रासं ततस्तोमरमृष्टयः
यद्यच्छस्त्रं समादद्यात्सर्वं तदच्छिनद्विभुः ४४

इसके बाद बलिने एकके पीछे एक क्रमशः शूल, प्रास, तोमर और शक्ति उठायी। परन्तु वे जो-जो शस्त्र हाथमें उठाते, इन्द्र उन्हें टुकड़े-टुकड़े कर डालते। इस हस्तलाघवसे इन्द्रका ऐश्वर्य और भी चमक उठा ।।४४।।

ससर्जाथासुरीं मायामन्तर्धानगतोऽसुरः
ततः प्रादुरभूच्छैलः सुरानीकोपरि प्रभो ४५

परीक्षित्! अब इन्द्रकी फुर्तीसे घबराकर पहले तो बलि अन्तर्धान हो गये, फिर उन्होंने आसुरी मायाकी सृष्टि की। तुरंत ही देवताओंकी सेनाके ऊपर एक पर्वत प्रकट हुआ ।।४५||

ततो निपेतुस्तरवो दह्यमाना दवाग्निना
शिलाः सटङ्कशिखराश्चूर्णयन्त्यो द्विषद्बलम् ४६

उस पर्वतसे दावाग्निसे जलते हुए वृक्ष और टाँकी-जैसी तीखी धारवाले शिखरोंके साथ नुकीली शिलाएँ गिरने लगीं। इसमे देवताओंकी सेना चकनाचूर होने लगी ।।४६।।

महोरगाः समुत्पेतुर्दन्दशूकाः सवृश्चिकाः
सिंहव्याघ्रवराहाश्च मर्दयन्तो महागजाः ४७

तत्पश्चात् बड़े-बड़े साँप, दन्दशूक, बिच्छू और अन्य विषैले जीव उछल-उछलकर काटने और डंक मारने लगे। सिंह, बाघ और सूअर देवसेनाके बड़े-बड़े हाथियोंको फाड़ने लगे ।।४७।।

यातुधान्यश्च शतशः शूलहस्ता विवाससः
छिन्धि भिन्धीति वादिन्यस्तथा रक्षोगणाः प्रभो ४८

परीक्षित्! हाथोंमें शूल लिये ‘मारो-काटो’ इस प्रकार चिल्लाती हुई सैकड़ों नंगधडंग राक्षसियाँ और राक्षस भी वहाँ प्रकट हो गये ।।४८।।

ततो महाघना व्योम्नि गम्भीरपरुषस्वनाः
अङ्गारान्मुमुचुर्वातैराहताः स्तनयित्नवः ४९

कुछ ही क्षण बाद आकाशमें बादलोंकी घनघोर घटाएँ मँडराने लगीं, उनके आपसमें टकरानेसे बड़ी गहरी और कठोर गर्जना होने लगी, बिजलियाँ चमकने लगीं और आँधीके झकझोरनेसे बादल अंगारोंकी वर्षा करने लगे ||४९।।

सृष्टो दैत्येन सुमहान्वह्निः श्वसनसारथिः
सांवर्तक इवात्युग्रो विबुधध्वजिनीमधाक् ५०

दैत्यराज बलिने प्रलयकी अग्निके समान बड़ी भयानक आगकी सष्टि की। वह बात-की-बातमें वायुकी सहायतासे देवसेनाको जलाने लगी ।।५०||

ततः समुद्र उद्वेलः सर्वतः प्रत्यदृश्यत
प्रचण्डवातैरुद्धूत तरङ्गावर्तभीषणः ५१

थोड़ी ही देरमें ऐसा जान पड़ा कि प्रबल आँधीके थपेड़ोंसे समुद्र में बड़ी-बड़ी लहरें और भयानक भँवर उठ रहे हैं और वह अपनी मर्यादा छोड़कर चारों ओरसे देवसेनाको घेरता हुआ उमड़ा आ रहा है ।।५१।।

एवं दैत्यैर्महामायैरलक्ष्यगतिभी रणे
सृज्यमानासु मायासु विषेदुः सुरसैनिकाः ५२

इस प्रकार जब उन भयानक असुरोंने बहुत बड़ी मायाकी सृष्टि की और स्वयं अपनी मायाके प्रभावसे छिप रहे-न दीखनेके कारण उनपर प्रहार भी नहीं किया जा सकता था तब देवताओंके सैनिक बहत दुःखी हो गये ।।५२।।

न तत्प्रतिविधिं यत्र विदुरिन्द्रादयो नृप
ध्यातः प्रादुरभूत्तत्र भगवान्विश्वभावनः ५३

परीक्षित्! इन्द्र आदि देवताओंने उनकी मायाका प्रतीकार करनेके लिये बहुत कुछ सोचा-विचारा, परन्तु उन्हें कुछ न सूझा। तब उन्होंने विश्वके जीवनदाता भगवान्का ध्यान किया और ध्यान करते ही वे वहीं प्रकट हो गये ।।५३।।

ततः सुपर्णांसकृताङ्घ्रिपल्लवः पिशङ्गवासा नवकञ्जलोचनः
अदृश्यताष्टायुधबाहुरुल्लसच्छ्रीकौस्तुभानर्घ्यकिरीटकुण्डलः ५४

बड़ी ही सुन्दर झाँकी थी। गरुडके कंधेपर उनके चरण-कमल विराजमान थे। – नवीन कमलके समान बड़े ही कोमल नेत्र थे। पीताम्बर धारण किये हुए थे। आठ भुजाओंमें आठ आयुध, गलेमें कौस्तुभमणि, मस्तकपर अमूल्य मुकुट एवं कानोंमें कुण्डल झलमला रहे थे। देवताओंने अपने नेत्रोंसे भगवानकी इस छबिका दर्शन किया ।।५४।।।

तस्मिन्प्रविष्टेऽसुरकूटकर्मजा माया विनेशुर्महिना महीयसः
स्वप्नो यथा हि प्रतिबोध आगते हरिस्मृतिः सर्वविपद्विमोक्षणम् ५५

परम पुरुष परमात्माके प्रकट होते ही उनके प्रभावसे असुरोंकी वह कपटभरी माया विलीन हो गयी-ठीक वैसे ही जैसे जग जानेपर स्वप्नकी वस्तुओंका पता नहीं चलता। ठीक ही है, भगवान्की स्मृति समस्त विपत्तियोंसे मुक्त कर देती है ।।५५||

दृष्ट्वा मृधे गरुडवाहमिभारिवाह आविध्य शूलमहिनोदथ कालनेमिः
तल्लीलया गरुडमूर्ध्नि पतद्गृहीत्वा तेनाहनन्नृप सवाहमरिं त्र्! यधीशः ५६

इसके बाद कालनेमि दैत्यने देखा कि लड़ाईके मैदानमें गरुडवाहन भगवान् आ गये हैं तब उसने अपने सिंहपर बैठे-ही-बैठे बड़े वेगसे उनके ऊपर एक त्रिशूल चलाया। वह गरुडके सिरपर लगनेवाला ही था कि खेल-खेलमें भगवान्ने उसे पकड़ लिया और उसी त्रिशूलसे उसके चलानेवाले कालनेमि दैत्य तथा उसके वाहनको मार डाला ||५६||

माली सुमाल्यतिबलौ युधि पेततुर्यच्चक्रेण कृत्तशिरसावथ माल्यवांस्तम्
आहत्य तिग्मगदयाहनदण्डजेन्द्रं तावच्छिरोऽच्छिनदरेर्नदतोऽरिणाद्यः ५७

माली और सुमाली–दो दैत्य बड़े बलवान् थे, भगवान्ने युद्धमें अपने चक्रसे उनके सिर भी काट डाले और वे निर्जीव होकर गिर पड़े। तदनन्तर माल्यवान्ने अपनी प्रचण्ड गदासे गरुड़पर बड़े वेगके साथ प्रहार किया। परन्तु गर्जना करते हुए माल्यवान्के प्रहार करते-न-करते ही भगवान्ने चक्रसे उसके सिरको भी धड़से अलग कर दिया ।।५७।।

इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायामष्टमस्कन्धे देवासुरसङ्ग्रामे दशमोऽध्यायः


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Shweta Srinet

गरिमा जी संस्कृत भाषा में परास्नातक एवं राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण हैं। यह RamCharit.in हेतु 2018 से सतत पूर्णकालिक सदस्य के रूप में कार्य कर रही हैं। धार्मिक ग्रंथों को उनके मूल आध्यात्मिक रूप में सरलता से उपलब्ध कराने का कार्य इसके द्वारा ही निष्पादित होता है।

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