RamCharitManas (RamCharit.in)

इंटरनेट पर श्रीरामजी का सबसे बड़ा विश्वकोश | RamCharitManas Ramayana in Hindi English | रामचरितमानस रामायण हिंदी अनुवाद अर्थ सहित

वाल्मीकि रामायण किष्किन्धाकाण्ड हिंदी अर्थ सहित

वाल्मीकि रामायण किष्किन्धाकाण्ड सर्ग 62 हिंदी अर्थ सहित | Valmiki Ramayana Kiskindhakand Chapter 62

Spread the Glory of Sri SitaRam!

॥ श्रीसीतारामचन्द्राभ्यां नमः॥
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण
किष्किन्धाकाण्डम्
द्विषष्टितमः सर्गः (सर्ग 62)

निशाकर मुनि का सम्पाति को सान्त्वना देते हुए उन्हें भावी श्रीरामचन्द्रजी के कार्य में सहायता देने के लिये जीवित रहने का आदेश देना

 

एवमुक्त्वा मुनिश्रेष्ठमरुदं भृशदुःखितः।
अथ ध्यात्वा मुहूर्तं च भगवानिदमब्रवीत्॥१॥

‘वानरो! उन मुनिश्रेष्ठ से ऐसा कहकर मैं बहुत दुःखी हो विलाप करने लगा। मेरी बात सुनकर थोड़ी देर तक ध्यान करने के बाद महर्षि भगवान् निशाकर बोले- ॥१॥

पक्षौ च ते प्रपक्षौ च पुनरन्यौ भविष्यतः।
चक्षुषी चैव प्राणाश्च विक्रमश्च बलं च ते॥२॥

‘सम्पाते! चिन्ता न करो। तुम्हारे छोटे और बड़े दोनों तरह के पंख फिर नये निकल आयेंगे। आँखें भी ठीक हो जायँगी तथा खोयी हुई प्राणशक्ति, बल और पराक्रम-सब लौट आयेंगे॥२॥

पुराणे सुमहत्कार्यं भविष्यं हि मया श्रुतम्।
दृष्टं मे तपसा चैव श्रुत्वा च विदितं मम॥३॥

‘मैंने पुराण में आगे होने वाले अनेक बड़े-बड़े कार्यों की बात सुनी है। सुनकर तपस्या के द्वारा भी मैंने उन सब बातों को प्रत्यक्ष किया और जाना है। ३॥

राजा दशरथो नाम कश्चिदिक्ष्वाकुवर्धनः।
तस्य पुत्रो महातेजा रामो नाम भविष्यति॥४॥

‘इक्ष्वाकुवंश की कीर्ति बढ़ाने वाले कोई दशरथ नाम से प्रसिद्ध राजा होंगे। उनके एक महातेजस्वी पुत्र होंगे, जिनकी श्रीराम के नाम से प्रसिद्धि होगी॥४॥

अरण्यं च सह भ्रात्रा लक्ष्मणेन गमिष्यति।
तस्मिन्नर्थे नियुक्तः सन् पित्रा सत्यपराक्रमः॥५॥

‘सत्यपराक्रमी श्रीरामचन्द्रजी अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वनमें जायँगे; इसके लिये उन्हें पिता की ओर से आज्ञा प्राप्त होगी॥५॥

नैर्ऋतो रावणो नाम तस्य भार्यां हरिष्यति।
राक्षसेन्द्रो जनस्थाने अवध्यः सुरदानवैः ॥६॥

‘वनवास-कालमें जनस्थानमें रहते समय उनकी पत्नी सीताको राक्षसोंका राजा रावण नामक असुर हर ले जायगा। वह देवताओं और दानवोंके लिये भी अवध्य होगा॥६॥

सा च कामैः प्रलोभ्यन्ती भक्ष्यैर्भोज्यैश्च मैथिली।
न भोक्ष्यति महाभागा दुःखमग्ना यशस्विनी॥७॥

‘मिथिलेशकुमारी सीता बड़ी ही यशस्विनी और सौभाग्यवती होगी। यद्यपि राक्षसराज की ओर से उसको तरह-तरह के भोगों और भक्ष्य-भोज्य आदि पदार्थों का प्रलोभन दिया जायगा, तथापि वह उन्हें स्वीकार नहीं करेगी और निरन्तर अपने पति के लिये चिन्तित होकर दुःख में डूबी रहेगी॥७॥

परमान्नं च वैदेह्या ज्ञात्वा दास्यति वासवः।
यदन्नममृतप्रख्यं सुराणामपि दुर्लभम्॥८॥

‘सीता राक्षस का अन्न नहीं ग्रहण करती—यह मालूम होने पर देवराज इन्द्र उसके लिये अमृत के समान खीर, जो देवताओं को दुर्लभ है, निवेदन करेंगे॥८॥

तदन्नं मैथिली प्राप्य विज्ञायेन्द्रादिदं त्विति।
अग्रमुद्धृत्य रामाय भूतले निर्वपिष्यति॥९॥

‘उस अन्न को  इन्द्र का दिया हुआ जानकर जानकी उसे स्वीकार कर लेगी और सबसे पहले उसमें से अग्रभाग निकालकर श्रीरामचन्द्रजी के उद्देश्य से पृथ्वी पर रखकर अर्पण करेगी॥९॥

यदि जीवति मे भर्ता लक्ष्मणो वापि देवरः।
देवत्वं गच्छतोर्वापि तयोरन्नमिदं त्विति॥१०॥

‘उस समय वह इस प्रकार कहेगी—’मेरे पति भगवान् श्रीराम तथा देवर लक्ष्मण यदि जीवित हों अथवा देवभाव को प्राप्त हो गये हों, यह अन्न उनके लिये समर्पित है’॥ १०॥

एष्यन्ति प्रेषितास्तत्र रामदूताः प्लवङ्गमाः।
आख्येया राममहिषी त्वया तेभ्यो विहङ्गम॥११॥

‘सम्पाते! रघुनाथजी के भेजे हुए उनके दूत वानर यहाँ सीता का पता लगाते हुए आयेंगे। उन्हें तुम श्रीराम की महारानी सीता का पता बताना ॥ ११॥

सर्वथा तु न गन्तव्यमीदृशः क्व गमिष्यसि।
देशकालौ प्रतीक्षस्व पक्षौ त्वं प्रतिपत्स्यसे॥१२॥

‘यहाँ से किसी तरह कभी दूसरी जगह न जाना। ऐसी दशा में तुम जाओगे भी कहाँ। देश और काल की प्रतीक्षा करो तुम्हें फिर नये पंख प्राप्त हो जायँगे॥ १२॥

उत्सहेयमहं कर्तुमद्यैव त्वां सपक्षकम्।
इहस्थस्त्वं हि लोकानां हितं कार्यं करिष्यसि॥१३॥

‘यद्यपि मैं आज ही तुम्हें पंखयुक्त कर सकता हूँ; फिर भी इसलिये ऐसा नहीं करता कि यहाँ रहने पर तुम संसार के लिये हितकर कार्य कर सकोगे॥ १३ ॥

त्वयापि खलु तत् कार्यं तयोश्च नृपपुत्रयोः।
ब्राह्मणानां गुरूणां च मुनीनां वासवस्य च॥१४॥

‘तुम भी उन दोनों राजकुमारों के कार्य में सहायता करना। वह कार्य केवल उन्हीं का नहीं, समस्त ब्राह्मणों, गुरुजनों, मुनियों और देवराज इन्द्र का भी है॥ १४॥

इच्छाम्यहमपि द्रष्टुं भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ।
नेच्छे चिरं धारयितुं प्राणांस्त्यक्ष्ये कलेवरम्।
महर्षिस्त्वब्रवीदेवं दृष्टतत्त्वार्थदर्शनः ॥१५॥

‘यहाँ से किसी तरह कभी दूसरी जगह न जाना। ऐसी दशा में तुम जाओगे भी कहाँ। देश और काल की प्रतीक्षा करो तुम्हें फिर नये पंख प्राप्त हो जायँगे॥ १२॥

उत्सहेयमहं कर्तुमद्यैव त्वां सपक्षकम्।
इहस्थस्त्वं हि लोकानां हितं कार्यं करिष्यसि॥१३॥

‘यद्यपि मैं आज ही तुम्हें पंखयुक्त कर सकता हूँ; फिर भी इसलिये ऐसा नहीं करता कि यहाँ रहने पर तुम संसार के लिये हितकर कार्य कर सकोगे॥ १३ ॥

त्वयापि खलु तत् कार्यं तयोश्च नृपपुत्रयोः।
ब्राह्मणानां गुरूणां च मुनीनां वासवस्य च॥१४॥

‘तुम भी उन दोनों राजकुमारों के कार्य में सहायता करना। वह कार्य केवल उन्हीं का नहीं, समस्त ब्राह्मणों, गुरुजनों, मुनियों और देवराज इन्द्र का भी है॥ १४॥

इच्छाम्यहमपि द्रष्टुं भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ।
नेच्छे चिरं धारयितुं प्राणांस्त्यक्ष्ये कलेवरम्।
महर्षिस्त्वब्रवीदेवं दृष्टतत्त्वार्थदर्शनः ॥१५॥

‘यद्यपि मैं भी उन दोनों भाइयों का दर्शन करना चाहता हूँ; परंतु अधिक कालतक इन प्राणों को धारण करने की इच्छा नहीं है। अतः वह समय आने से पहले ही मैं प्राणों को त्याग दूंगा’ ऐसा उन तत्त्वदर्शी महर्षि ने मुझे कहा था’।

इत्याचे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये किष्किन्धाकाण्डे द्विषष्टितमः सर्गः॥६२॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के किष्किन्धाकाण्ड में बासठवाँ सर्ग पूरा हुआ॥६२॥


Spread the Glory of Sri SitaRam!

Shivangi

शिवांगी RamCharit.in को समृद्ध बनाने के लिए जनवरी 2019 से कर्मचारी के रूप में कार्यरत हैं। यह इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी में स्नातक एवं MBA (Gold Medalist) हैं। तकनीकि आधारित संसाधनों के प्रयोग से RamCharit.in पर गुणवत्ता पूर्ण कंटेंट उपलब्ध कराना इनकी जिम्मेदारी है जिसे यह बहुत ही कुशलता पूर्वक कर रही हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

उत्कृष्ट व निःशुल्क सेवाकार्यों हेतु आपके आर्थिक सहयोग की अति आवश्यकता है! आपका आर्थिक सहयोग हिन्दू धर्म के वैश्विक संवर्धन-संरक्षण में सहयोगी होगा। RamCharit.in व SatyaSanatan.com धर्मग्रंथों को अनुवाद के साथ इंटरनेट पर उपलब्ध कराने हेतु अग्रसर हैं। कृपया हमें जानें और सहयोग करें!

X
error: