RamCharitManas (RamCharit.in)

इंटरनेट पर श्रीरामजी का सबसे बड़ा विश्वकोश | RamCharitManas Ramayana in Hindi English | रामचरितमानस रामायण हिंदी अनुवाद अर्थ सहित

वाल्मीकि रामायण युद्धकाण्ड हिंदी अर्थ सहित

वाल्मीकि रामायण युद्धकाण्ड सर्ग 55 हिंदी अर्थ सहित | Valmiki Ramayana Yuddhakanda Chapter 55

Spread the Glory of Sri SitaRam!

॥ श्रीसीतारामचन्द्राभ्यां नमः॥
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण
युद्धकाण्डम्
पञ्चपञ्चाशः सर्गः (55)

रावण की आज्ञा से अकम्पन आदि राक्षसों का युद्ध में आना और वानरों के साथ उनका घोर युद्ध

 

वज्रदंष्ट्रं हतं श्रुत्वा वालिपुत्रेण रावणः।
बलाध्यक्षमुवाचेदं कृताञ्जलिमुपस्थितम्॥१॥

वालिपुत्र अङ्गद के हाथ से वज्रदंष्ट्र के मारे जाने का समाचार सुनकर रावण ने हाथ जोड़कर अपने पास खड़े हुए सेनापति प्रहस्त से कहा- ॥१॥

शीघ्रं निर्यान्तुदुर्धर्षा राक्षसा भीमविक्रमाः।
अकम्पनं पुरस्कृत्य सर्वशस्त्रास्त्रकोविदम्॥२॥

‘अकम्पन सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्रों के ज्ञाता हैं, अतः उन्हीं को आगे करके भयंकर पराक्रमी दुर्धर्ष राक्षस शीघ्र यहाँ से युद्ध के लिये जायें ॥२॥

एष शास्ता च गोप्ता च नेता च युधि सत्तमः।
भूतिकामश्च मे नित्यं नित्यं च समरप्रियः॥३॥

‘अकम्पन को युद्ध सदा ही प्रिय है। ये सर्वदा मेरी उन्नति चाहते हैं। इन्हें युद्ध में एक श्रेष्ठ योद्धा माना गया है। ये शत्रुओं को दण्ड देने, अपने सैनिकों की रक्षा करने तथा रणभूमि में सेना का संचालन करने में समर्थ हैं ॥३॥

एष जेष्यति काकुत्स्थौ सुग्रीवं च महाबलम्।
वानरांश्चापरान् घोरान् हनिष्यति न संशयः॥४॥

‘अकम्पन दोनों भाई श्रीराम और लक्ष्मण को तथा महाबली सुग्रीव को भी परास्त कर देंगे और दूसरे-दूसरे भयानक वानरों का भी संहार कर डालेंगे, इसमें संशय नहीं है’॥४॥

परिगृह्य स तामाज्ञां रावणस्य महाबलः।
बलं सम्प्रेरयामास तदा लघुपराक्रमः॥५॥

रावण की उस आज्ञा को शिरोधार्य करके शीघ्रपराक्रमी महाबली सेनाध्यक्ष ने उस समय युद्ध के लिये सेना भेजी॥५॥

ततो नानाप्रहरणा भीमाक्षा भीमदर्शनाः।
निष्पेतू राक्षसा मुख्या बलाध्यक्षप्रचोदिताः॥६॥

सेनापति से प्रेरित हो भयानक नेत्रोंवाले मुख्य-मुख्य भयंकर राक्षस नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्र लिये नगर से बाहर निकले॥६॥

रथमास्थाय विपुलं तप्तकाञ्चनभूषणम्।
मेघाभो मेघवर्णश्च मेघस्वनमहास्वनः॥७॥
राक्षसैः संवृतो घोरैस्तदा निर्यात्यकम्पनः।

उसी समय तपे हुए सोने से विभूषित विशाल रथ पर आरूढ़ हो घोर राक्षसों से घिरा हुआ अकम्पन भी निकला। वह मेघ के समान विशाल था, मेघ के समान ही उसका रंग था और मेघ के ही तुल्य उसकी गर्जना थी॥ ७ १/२॥

नहि कम्पयितुं शक्यः सुरैरपि महामृधे॥८॥
अकम्पनस्ततस्तेषामादित्य इव तेजसा।

महासमर में देवता भी उसे कम्पित नहीं कर सकते थे, इसीलिये वह अकम्पन नाम से विख्यात था और राक्षसों में सूर्य के समान तेजस्वी था॥ ८ १/२ ॥

तस्य निर्धावमानस्य संरब्धस्य युयुत्सया॥९॥
अकस्माद् दैन्यमागच्छद्धयानां रथवाहिनाम्।

रोषावेश से भरकर युद्ध की इच्छा से धावा करने वाले अकम्पन के रथ में जुते हुए घोड़ों का मन अकस्मात् दीनभाव को प्राप्त हो गया॥९ १/२॥

व्यस्फुरन्नयनं चास्य सव्यं युद्धाभिनन्दिनः॥१०॥
विवर्णो मुखवर्णश्च गद्गदश्चाभवत् स्वनः।

यद्यपि अकम्पन युद्ध का अभिनन्दन करने वाला था, तथापि उस समय उसकी बायीं आँख फड़कने लगी। मुख की कान्ति फीकी पड़ गयी और वाणी गद्गद हो गयी॥

अभवत् सुदिने काले दुर्दिनं रूक्षमारुतम्॥११॥
ऊचुः खगमृगाः सर्वे वाचः क्रूरा भयावहाः।

यद्यपि वह समय सुदिन का था, तथापि सहसा रूखी हवा से युक्त दुर्दिन छा गया। सभी पशु और पक्षी क्रूर एवं भयदायक बोली बोलने लगे॥ ११ १/२॥

स सिंहोपचितस्कन्धः शार्दूलसमविक्रमः॥१२॥
तानुत्पातानचिन्त्यैव निर्जगाम रणाजिरम्।

अकम्पन के कन्धे सिंह के समान पुष्ट थे। उसका पराक्रम व्याघ्र के समान था। वह पूर्वोक्त उत्पातों की कोई परवा न करके रणभूमि की ओर चला॥ १२ १/२॥

तथा निर्गच्छतस्तस्य रक्षसः सह राक्षसैः॥१३॥
बभूव सुमहान् नादः क्षोभयन्निव सागरम्।

जिस समय वह राक्षस दूसरे राक्षसों के साथ लङ्का से निकला, उस समय ऐसा महान् कोलाहल हुआ कि समुद्र में भी हलचल-सी मच गयी॥ १३ १/२॥

तेन शब्देन वित्रस्ता वानराणां महाचमूः॥१४॥
द्रुमशैलप्रहाराणां योद्धं समुपतिष्ठताम्।
तेषां युद्धं महारौद्रं संजज्ञे कपिरक्षसाम्॥१५॥

उस महान् कोलाहल से वानरों की वह विशाल सेना भयभीत हो गयी। युद्ध के लिये उपस्थित हो वृक्षों और शैल-शिखरों का प्रहार करने वाले उन वानरों और राक्षसों में महाभयंकर युद्ध होने लगा॥१४-१५ ॥

रामरावणयोरर्थे समभित्यक्तदेहिनः।
सर्वे ह्यतिबलाः शूराः सर्वे पर्वतसंनिभाः॥१६॥

श्रीराम और रावण के निमित्त आत्मत्याग के लिये उद्यत हुए वे समस्त शूरवीर अत्यन्त बलशाली और पर्वत के समान विशालकाय थे॥ १६ ॥

हरयो राक्षसाश्चैव परस्परजिघांसया।
तेषां विनर्दतां शब्दः संयुगेऽतितरस्विनाम्॥१७॥
शुश्रुवे सुमहान् कोपादन्योन्यमभिगर्जताम्।

वानर तथा राक्षस एक-दूसरे के वध की इच्छा से वहाँ एकत्र हुए थे। वे युद्धस्थल में अत्यन्त वेगशाली थे। कोलाहल करते और एक-दूसरे को लक्ष्य करके क्रोधपूर्वक गर्जते थे। उनका महान् शब्द सुदूरतक सुनायी देता था॥ १७ १/२॥

रजश्चारुणवर्णाभं सुभीममभवद् भृशम्॥१८॥
उद्धृतं हरिरक्षोभिः संरुरोध दिशो दश।

वानरों और राक्षसों द्वारा उड़ायी गयी लाल रंग की धूल बड़ी भयंकर जान पड़ती थी। उसने दसों दिशाओं को आच्छादित कर लिया था॥ १८ १/२॥

अन्योन्यं रजसा तेन कौशेयोद्धतपाण्डुना॥१९॥
संवृतानि च भूतानि ददृशुर्न रणाजिरे।

परस्पर उड़ायी हुई वह धूल हिलते हुए रेशमी वस्त्र के समान पाण्डुवर्ण की दिखायी देती थी। उसके द्वारा समराङ्गण में समस्त प्राणी ढक गये थे। अतः वानर और राक्षस उन्हें देख नहीं पाते थे॥ १९ १/२॥

न ध्वजो न पताका वा चर्म वा तुरगोऽपि वा।२०॥
आयुधं स्यन्दनो वापि ददृशे तेन रेणुना।

उस धूल से आच्छादित होने के कारण ध्वज, पताका, ढाल, घोड़ा, अस्त्र-शस्त्र अथवा रथ कोई भी वस्तु दिखायी नहीं देती थी॥ २० १/२॥

शब्दश्च सुमहांस्तेषां नर्दतामभिधावताम्॥ २१॥
श्रूयते तुमुलो युद्धे न रूपाणि चकाशिरे।

उन गर्जते और दौड़ते हुए प्राणियों का महाभयंकर शब्द युद्धस्थल में सबको सुनायी पड़ता था, परंतु उनके रूप नहीं दिखायी देते थे॥ २१ १/२॥

हरीनेव सुसंरुष्टा हरयो जनुराहवे॥२२॥
राक्षसा राक्षसांश्चापि निजघ्नुस्तिमिरे तदा।

अन्धकार से आच्छादित युद्धस्थल में अत्यन्त कुपित हुए वानर वानरों पर ही प्रहार कर बैठते थे तथा राक्षस राक्षसों को ही मारने लगते थे॥ २२ १/२॥

ते परांश्च विनिघ्नन्तः स्वांश्च वानरराक्षसाः॥२३॥
रुधिराहॊ तदा चक्रुर्महीं पङ्कानुलेपनाम्।

अपने तथा शत्रुपक्ष के योद्धाओं को मारते हुए वानरों तथा राक्षसों ने उस रणभूमि को रक्त की धारा से भिगो दिया और वहाँ कीच मचा दी॥ २३ १/२ ॥

ततस्तु रुधिरौघेण सिक्तं ह्यपगतं रजः॥२४॥
शरीरशवसंकीर्णा बभूव च वसुंधरा।

तदनन्तर रक्त के प्रवाह से सिंच जाने के कारण वहाँ की धूल बैठ गयी और सारी युद्धभूमि लाशों से भर गयी॥२४ १/२॥

द्रुमशक्तिगदाप्रासैः शिलापरिघतोमरैः॥ २५॥
राक्षसा हरयस्तूर्णं जघ्नुरन्योन्यमोजसा।

वानर और राक्षस एक-दूसरेपर वृक्ष, शक्ति, गदा, प्रास, शिला, परिघ और तोमर आदि से बलपूर्वक जल्दी-जल्दी प्रहार करने लगे॥२५ १/२ ॥

बाहुभिः परिघाकारैर्युध्यन्तः पर्वतोपमान्॥२६॥
हरयो भीमकर्माणो राक्षसाञ्जजुराहवे।

भयंकर कर्म करने वाले वानर अपनी परिघ के समान भुजाओं द्वारा पर्वताकार राक्षसों के साथ युद्ध करते हुए रणभूमि में उन्हें मारने लगे॥ २६ १/२ ॥

राक्षसास्त्वभिसंक्रुद्धाः प्रासतोमरपाणयः॥ २७॥
कपीन् निजजिरे तत्र शस्त्रैः परमदारुणैः।

उधर राक्षसलोग भी अत्यन्त कुपित हो हाथों में प्रास और तोमर लिये अत्यन्त भयंकर शस्त्रों द्वारा वानरों का वध करने लगे॥२७ १/२॥

अकम्पनः सुसंक्रुद्धो राक्षसानां चमूपतिः॥२८॥
संहर्षयति तान् सर्वान् राक्षसान् भीमविक्रमान्।

इस समय अधिक रोष से भरा हुआ राक्षस-सेनापति अकम्पन भी भयानक पराक्रम प्रकट करने वाले उन सभी राक्षसों का हर्ष बढ़ाने लगा॥२८ १/२ ॥

हरयस्त्वपि रक्षांसि महाद्रुममहाश्मभिः॥२९॥
विदारयन्त्यभिक्रम्य शस्त्राण्याच्छिद्य वीर्यतः।

वानर भी बलपूर्वक आक्रमण करके राक्षसों के अस्त्र-शस्त्र छीनकर बड़े-बड़े वृक्षों और शिलाओं द्वारा उन्हें विदीर्ण करने लगे॥ २९ १/२॥

एतस्मिन्नन्तरे वीरा हरयः कुमुदो नलः॥३०॥
मैन्दश्च द्विविदः क्रुद्धाश्चक्रुर्वेगमनुत्तमम्।

इसी समय वीर वानर कुमुद, नल, मैन्द और द्विविद ने कुपित हो अपना परम उत्तम वेग प्रकट किया॥३० १/२॥

ते तु वृक्षैर्महावीरा राक्षसानां चमूमुखे॥३१॥
कदनं सुमहच्चक्रुर्लीलया हरिपुंगवाः।
ममन्थू राक्षसान् सर्वे नानाप्रहरणैर्भृशम्॥३२॥

उन महावीर वानरशिरोमणियों ने युद्ध के मुहाने पर वृक्षों द्वारा खेल-खेल में ही राक्षसों का बड़ा भारी संहार किया। उन सबने नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्रों द्वारा राक्षसों को भलीभाँति मथ डाला॥३१-३२॥

इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे पञ्चपञ्चाशः सर्गः॥५५॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के युद्धकाण्ड में पचपनवाँ सर्ग पूरा हुआ।५५॥


Spread the Glory of Sri SitaRam!

Shivangi

शिवांगी RamCharit.in को समृद्ध बनाने के लिए जनवरी 2019 से कर्मचारी के रूप में कार्यरत हैं। यह इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी में स्नातक एवं MBA (Gold Medalist) हैं। तकनीकि आधारित संसाधनों के प्रयोग से RamCharit.in पर गुणवत्ता पूर्ण कंटेंट उपलब्ध कराना इनकी जिम्मेदारी है जिसे यह बहुत ही कुशलता पूर्वक कर रही हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

उत्कृष्ट व निःशुल्क सेवाकार्यों हेतु आपके आर्थिक सहयोग की अति आवश्यकता है! आपका आर्थिक सहयोग हिन्दू धर्म के वैश्विक संवर्धन-संरक्षण में सहयोगी होगा। RamCharit.in व SatyaSanatan.com धर्मग्रंथों को अनुवाद के साथ इंटरनेट पर उपलब्ध कराने हेतु अग्रसर हैं। कृपया हमें जानें और सहयोग करें!

X
error: