सबहिं बिचारु कीन्ह मन माहीं। राम लखन सिय बिनु सुखु नाहीं॥ जहाँ रामु तहँ सबुइ समाजू। बिनु रघुबीर अवध नहिं काजू॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
सबहिं बिचारु कीन्ह मन माहीं। राम लखन सिय बिनु सुखु नाहीं॥
जहाँ रामु तहँ सबुइ समाजू। बिनु रघुबीर अवध नहिं काजू॥3॥
भावार्थ:
सबने मन में विचार कर लिया कि श्री रामजी, लक्ष्मणजी और सीताजी के बिना सुख नहीं है। जहाँ श्री रामजी रहेंगे, वहीं सारा समाज रहेगा। श्री रामचन्द्रजी के बिना अयोध्या में हम लोगों का कुछ काम नहीं है॥3॥
English :
IAST :
Meaning :