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श्री दुर्गाजी स्तुति संग्रह

श्रीसरस्वतीस्तोत्रम् स्तोत्र हिंदी अंग्रेजी अर्थ सहित | Shri Saraswati Stotram Lyrics in Sanskrit English

Spread the Glory of Sri SitaRam!

श्रीसरस्वतीस्तोत्रम्

 

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥१॥

yā kundendutuṣārahāradhavalā yā śubhravastrāvṛtā
yā vīṇāvaradaṇḍamaṇḍitakarā yā śvetapadmāsanā।
yā brahmācyutaśaṅkaraprabhṛtibhirdevaiḥ sadā vanditā
sā māṃ pātu sarasvatī bhagavatī niḥśeṣajāḍyāpahā॥1॥

जो कुन्द के फूल, चन्द्रमा, बर्फ और हार के समान श्वेत हैं, जो शुभ्र कपड़े पहनती हैं, जिनके हाथ उत्तम वीणा से सुशोभित हैं, जो श्वेत कमलासन पर बैठती हैं, ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देव जिनकी सदा स्तुति करते हैं और जो सब प्रकार की जड़ता हर लेती हैं, वे भगवती सरस्वती मेरा पालन करें॥१॥

आशासु राशीभवदङ्गवल्ली
भासैव दासीकृतदुग्धसिन्धुम्।
मन्दस्मितैर्निन्दितशारदेन्दु
वन्देऽरविन्दासनसुन्दरि त्वाम्॥२॥

āśāsu rāśībhavadaṅgavallī
bhāsaiva dāsīkṛtadugdhasindhum।
mandasmitairninditaśāradendu
vande’ravindāsanasundari tvām॥2॥

हे कमल पर बैठने वाली सुन्दरी सरस्वति ! तुम सब दिशाओं में पुंजीभूत हुई अपनी देहलता की आभा से ही क्षीर-समुद्र को दास बनाने वाली और मन्द मुसकान से शरद्-ऋतु के चन्द्रमा को तिरस्कृत करने वाली हो, तुमको मैं प्रणाम करता हूँ॥२॥

शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे।
सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात्॥३॥

śāradā śāradāmbhojavadanā vadanāmbuje।
sarvadā sarvadāsmākaṃ sannidhiṃ sannidhiṃ kriyāt॥3॥

शरत्काल में उत्पन्न कमल के समान मुखवाली और सब मनोरथों को देने वाली शारदा सब सम्पत्तियों के साथ मेरे मुख में सदा निवास करें॥३॥

सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम्।
देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जनाः॥४॥

sarasvatīṃ ca tāṃ naumi vāgadhiṣṭhātṛdevatām।
devatvaṃ pratipadyante yadanugrahato janāḥ॥4॥

उन वचन की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती को प्रणाम करता हूँ जिनकी कृपा से मनुष्य देवता बन जाता है। ४॥

पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्नः सरस्वती।
प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या॥५॥

pātu no nikaṣagrāvā matihemnaḥ sarasvatī।
prājñetaraparicchedaṃ vacasaiva karoti yā॥5॥

बुद्धिरूपी सोने के लिये कसौटी के समान सरस्वतीजी, जो केवल वचन से ही विद्वान् और मूल् की परीक्षा कर देती हैं, हमलोगों का पालन करें।

शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥

śuklāṃ brahmavicārasāraparamāmādyāṃ jagadvyāpinīṃ
vīṇāpustakadhāriṇīmabhayadāṃ jāḍyāndhakārāpahām।
haste sphāṭikamālikāṃ ca dadhatīṃ padmāsane saṃsthitāṃ
vande tāṃ parameśvarīṃ bhagavatīṃ buddhipradāṃ śāradām॥

जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचार की परम तत्त्व हैं, जो सब संसार में फैल रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, मूर्खतारूपी अन्धकार को दूर करती हैं, हाथ में स्फटिकमणि की माला लिये रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और बुद्धि देने वाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की वन्दना करता हूँ॥६॥

वीणाधरे विपुलमङ्गलदानशीले
भक्तार्तिनाशिनि विरञ्चिहरीशवन्द्ये।
कीर्तिप्रदेऽखिलमनोरथदे महार्हे
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्॥७॥

vīṇādhare vipulamaṅgaladānaśīle
bhaktārtināśini virañciharīśavandye।
kīrtiprade’khilamanorathade mahārhe
vidyāpradāyini sarasvati naumi nityam॥7॥

हे वीणा धारण करने वाली, अपार मंगल देने वाली, भक्तों के दुःख छुड़ाने वाली, ब्रह्मा, विष्णु और शिव से वन्दित होने वाली, कीर्ति तथा मनोरथ देने वाली, पूज्यवरा और विद्या देने वाली सरस्वति! तुमको नित्य प्रणाम करता हूँ॥७॥

श्वेताब्जपूर्णविमलासनसंस्थिते
हे श्वेताम्बरावृतमनोहरम गात्रे।
उद्यन्मनोज्ञसितपङ्कजम लास्ये
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्॥८॥

śvetābjapūrṇavimalāsanasaṃsthite
he śvetāmbarāvṛtamanoharama gātre।
udyanmanojñasitapaṅkajama lāsye
vidyāpradāyini sarasvati naumi nityam॥8॥

हे श्वेत कमलों से भरे हुए निर्मल आसन पर विराजने वाली, श्वेत वस्त्रों से ढके सुन्दर शरीर वाली, खुले हुए सुन्दर श्वेत कमल के समान मंजुल मुखवाली और विद्या देने वाली सरस्वति! तुमको नित्य प्रणाम करता हूँ !॥ ८॥

मातस्त्वदीयपदपङ्कजभक्तियुक्ता
ये त्वां भजन्ति निखिलानपरान्विहाय।
ते निर्जरत्वमिह यान्ति कलेवरेण
भूवह्निवायुगगनाम्बुविनिर्मितेन॥९॥

mātastvadīyapadapaṅkajabhaktiyuktā
ye tvāṃ bhajanti nikhilānaparānvihāya।
te nirjaratvamiha yānti kalevareṇa
bhūvahnivāyugaganāmbuvinirmitena॥9॥

हे मातः! जो (मनुष्य) तुम्हारे चरण-कमलों में भक्ति रखकर और सब देवताओं को छोड़कर तुम्हारा भजन करते हैं, वे पृथ्वी, अग्नि, वायु , आकाश और जल-इन पाँच तत्त्वों के बने शरीर से ही देवता बन जाते हैं॥९॥

मोहान्धकारभरिते हृदये मदीये
मातः सदैव कुरु वासमुदारभावे।
स्वीयाखिलावयवनिर्मलसुप्रभाभिः
शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम्॥१०॥

mohāndhakārabharite hṛdaye madīye
mātaḥ sadaiva kuru vāsamudārabhāve।
svīyākhilāvayavanirmalasuprabhābhiḥ
śīghraṃ vināśaya manogatamandhakāram॥10॥

हे उदार बुद्धिवाली माँ! मोहरूपी अन्धकार से भरे मेरे हृदय में सदा निवास करो और अपने सब अंगों की निर्मल कान्ति से मेरे मन के अन्धकार का शीघ्र नाश करो॥ १०॥

ब्रह्मा जगत् सृजति पालयतीन्दिरेशः
शम्भुर्विनाशयति देवि तव प्रभावैः।
न स्यात्कृपा यदि तव प्रकटप्रभावे
न स्यः कथञ्चिदपि ते निजकार्यदक्षाः॥११॥

brahmā jagat sṛjati pālayatīndireśaḥ
śambhurvināśayati devi tava prabhāvaiḥ।
na syātkṛpā yadi tava prakaṭaprabhāve
na syaḥ kathañcidapi te nijakāryadakṣāḥ॥11॥

हे देवि! तुम्हारे ही प्रभाव से ब्रह्मा जगत् को बनाते हैं, विष्णु पालते हैं और शिव विनाश करते हैं; हे प्रकट प्रभावशाली! यदि इन तीनों पर तुम्हारी कृपा न हो, तो वे किसी प्रकार अपना काम नहीं कर सकते॥ ११॥

लक्ष्मीर्मेधा धरा पुष्टिौरी तुष्टिः प्रभा धृतिः।
एताभिः पाहि तनुभिरष्टाभिर्मां सरस्वति॥१२॥

lakṣmīrmedhā dharā puṣṭiaurī tuṣṭiḥ prabhā dhṛtiḥ।
etābhiḥ pāhi tanubhiraṣṭābhirmāṃ sarasvati॥12॥

हे सरस्वति! लक्ष्मी, मेधा, धरा, पुष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा, धृति—इन आठ मूर्तियों से मेरी रक्षा करो ॥ १२॥

सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नमः।
वेदवेदान्तवेदाङ्गविद्यास्थानेभ्य एव च॥१३॥

sarasvatyai namo nityaṃ bhadrakālyai namo namaḥ।
vedavedāntavedāṅgavidyāsthānebhya eva ca॥13॥

सरस्वती को नित्य नमस्कार है, भद्रकाली को नमस्कार है और वेद, वेदान्त, वेदांग तथा विद्याओं के स्थानों को प्रणाम है॥ १३॥

सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने।
विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोऽस्तु ते॥१४॥

sarasvati mahābhāge vidye kamalalocane।
vidyārūpe viśālākṣi vidyāṃ dehi namo’stu te॥14॥

हे महाभाग्यवती ज्ञानस्वरूपा कमल के समान विशाल नेत्रवाली, ज्ञानदात्री सरस्वति! मुझको विद्या दो, मैं तुमको प्रणाम करता हूँ॥ १४ ॥

यदक्षरं पदं भ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत्।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ॥१५॥

yadakṣaraṃ padaṃ bhraṣṭaṃ mātrāhīnaṃ ca yadbhavet।
tatsarvaṃ kṣamyatāṃ devi prasīda parameśvari ॥15॥

हे देवि! जो अक्षर, पद अथवा मात्रा छूट गयी हो, उसके लिये क्षमा करो और हे परमेश्वरि! प्रसन्न रहो॥ १५॥

इति श्रीसरस्वतीस्तोत्रं सम्पूर्णम्।


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Shivangi

शिवांगी RamCharit.in को समृद्ध बनाने के लिए जनवरी 2019 से कर्मचारी के रूप में कार्यरत हैं। यह इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी में स्नातक एवं MBA (Gold Medalist) हैं। तकनीकि आधारित संसाधनों के प्रयोग से RamCharit.in पर गुणवत्ता पूर्ण कंटेंट उपलब्ध कराना इनकी जिम्मेदारी है जिसे यह बहुत ही कुशलता पूर्वक कर रही हैं।

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