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श्रीरामषट्पदी | Shree RamShadPadi

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॥ श्रीरामषट्पदी ॥

श्री गणेशाय नमः ।
तरणिकुलजलतरणे तरुणतरणितेजसा विभातरणे ।
कृतविदशदशमुखमुखतिमिरगणेऽन्तस्तमो नुद मे ॥ १॥

शयविधृतशरशरासन निखिलखलोज्जासनप्रथितसुयशाः ।
मथितहृदयान्तरालं दुष्कृतिजालं ममापनय ॥ २॥

सुरुचिरमरीचिनिचयांश्चरणनखेन्दूनुदाय मम हृदये ।
हृदयेश विकलतापं स्वसकलतापं किलापहर ॥ ३॥

इन्दीवरदलसुन्दर वरदलसद्वामजानकीजाने ।
जाने त्वामखिलेशं लेशलसल्लोकलोकेशम् ॥ ४॥

शं कुरु शङ्करवल्लभ यल्लभतामाश्वयं त्वदङ्घ्रियुगे ।
अनुरक्‍तिदृढां भक्‍तिं चिरस्य चिन्ताब्धिभवभक्‍तिम् ॥ ५॥

वैराजराजराजोऽप्यभूत्सुसाकेतराजनरराजः ।
वानरराजसहायो लीलाकैवल्यमेतद्धि ॥ ६॥

जगदसुसुतासुपरवसुमुदे यदेषा स्तुतिः कृता स्फीता ।
सा रामषट्पदीयं विलसतु तत्पादजलजाते ॥ ७॥

॥ इति श्रीमन्मालवीयशुक्ल श्रीमन्मथुरानाथप्रणीता रामषट्पदी समाप्ता ॥


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Shiv

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