RamCharitManas (RamCharit.in)

इंटरनेट पर श्रीरामजी का सबसे बड़ा विश्वकोश | RamCharitManas Ramayana in Hindi English | रामचरितमानस रामायण हिंदी अनुवाद अर्थ सहित

वाल्मीकि रामायण सुन्दरकाण्ड हिंदी अर्थ सहित

वाल्मीकि रामायण सुन्दरकाण्ड सर्ग 25 हिंदी अर्थ सहित | Valmiki Ramayana Sundarakanda Chapter 25

Spread the Glory of Sri SitaRam!

॥ श्रीसीतारामचन्द्राभ्यां नमः॥
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण
सुन्दरकाण्डम्
पञ्चविंशः सर्गः (25)

(राक्षसियों की बात मानने से इनकार करके शोक-संतप्त सीता का विलाप करना)

अथ तासां वदन्तीनां परुषं दारुणं बहु।
राक्षसीनामसौम्यानां रुरोद जनकात्मजा॥१॥

जब वे क्रूर राक्षसियाँ इस प्रकार की बहुत-सी कठोर एवं क्रूरतापूर्ण बातें कह रही थीं, उस समय जनकनन्दिनी सीता अधीर हो-होकर रो रही थीं॥१॥

एवमुक्ता तु वैदेही राक्षसीभिर्मनस्विनी।
उवाच परमत्रस्ता बाष्पगद्गदया गिरा॥२॥

उन राक्षसियों के इस प्रकार कहने पर अत्यन्त भयभीत हुई मनस्विनी विदेहराजकुमारी सीता नेत्रों से आँसू बहाती गद्गद वाणी में बोलीं- ॥२॥

न मानुषी राक्षसस्य भार्या भवितुमर्हति।
कामं खादत मां सर्वा न करिष्यामि वो वचः॥

‘राक्षसियो! मनुष्य की कन्या कभी राक्षस की भार्या नहीं हो सकती। तुम्हारा जी चाहे तो तुम सब लोग मिलकर मुझे खा जाओ, परंतु मैं तुम्हारी बात नहीं मानूँगी’ ॥३॥

सा राक्षसीमध्यगता सीता सुरसुतोपमा।
न शर्म लेभे शोकार्ता रावणेनेव भर्त्सिता॥४॥

राक्षसियों के बीच में बैठी हुई देवकन्या के समान सुन्दरी सीता रावण के द्वारा धमकायी जाने के कारण शोक से आर्त-सी होकर चैन नहीं पा रही थीं॥४॥

वेपते स्माधिकं सीता विशन्तीवांगमात्मनः।
वने यूथपरिभ्रष्टा मृगी कोकैरिवादिता॥५॥

जैसे वन में अपने यूथ से बिछुड़ी हुई मृगी भेड़ियों से पीड़ित होकर भय के मारे काँप रही हो, उसी प्रकार सीता जोर-जोर से काँप रही थीं और इस तरह सिकुड़ी जा रही थीं, मानो अपने अंगों में ही समा जायँगी॥५॥

सा त्वशोकस्य विपुलां शाखामालम्ब्य पुष्पिताम्।
चिन्तयामास शोकेन भर्तारं भग्नमानसा॥६॥

उनका मनोरथ भंग हो गया था। वे हताश-सी होकर अशोकवृक्ष की खिली हुई एक विशाल शाखा का सहारा ले शोक से पीड़ित हो अपने पतिदेव का चिन्तन करने लगीं॥६॥

सा स्नापयन्ती विपुलौ स्तनौ नेत्रजलस्रवैः।
चिन्तयन्ती न शोकस्य तदान्तमधिगच्छति॥७॥

आँसुओं के प्रवाह से अपने स्थूल उरोजों का अभिषेक करती हुई वे चिन्ता में डूबी थीं और उस समय शोक का पार नहीं पा रही थीं॥ ७॥

सा वेपमाना पतिता प्रवाते कदली यथा।
राक्षसीनां भयत्रस्ता विवर्णवदनाभवत्॥८॥

प्रचण्ड वायु के चलने पर कम्पित होकर गिरे हुए केले के वृक्ष की भाँति वे राक्षसियों के भय से  त्रस्त हो पृथ्वी पर गिर पड़ीं। उस समय उनके मुख की कान्ति फीकी पड़ गयी थी॥८॥

तस्याः सा दीर्घबहुला वेपन्त्याः सीतया तदा।
ददृशे कम्पिता वेणी व्यालीव परिसर्पती॥९॥

उस बेला में काँपती हुई सीता की विशाल एवं घनीभूत वेणी भी कम्पित हो रही थी, इसलिये वह रेंगती हुई सर्पिणी के समान दिखायी देती थी॥९॥

सा निःश्वसन्ती शोकार्ता कोपोपहतचेतना।
आर्ता व्यसृजदOणि मैथिली विललाप च॥१०॥

वे शोक से पीड़ित होकर लम्बी साँसें खींच रही थीं और क्रोध से अचेत-सी होकर आर्तभाव से आँसू बहा रही थीं। उस समय मिथिलेशकुमारी इस प्रकार विलाप करने लगीं— ॥१०॥

हा रामेति च दुःखार्ता हा पुनर्लक्ष्मणेति च।
हा श्वश्रूर्मम कौसल्ये हा सुमित्रेति भामिनी॥११॥

‘हा राम! हा लक्ष्मण! हा मेरी सासु कौसल्ये! हा आर्ये सुमित्रे! बारम्बार ऐसा कहकर दुःख से पीड़ित हुई भामिनी सीता रोने-बिलखने लगीं॥ ११॥

लोकप्रवादः सत्योऽयं पण्डितैः समुदाहृतः।
अकाले दुर्लभो मृत्युः स्त्रिया वा पुरुषस्य वा॥

‘हाय! पण्डितों ने यह लोकोक्ति ठीक ही कही है कि ‘किसी भी स्त्री या पुरुष की मृत्यु बिना समय आये नहीं होती’ ॥ १२॥

यत्राहमाभिः क्रूराभी राक्षसीभिरिहार्दिता।
जीवामि हीना रामेण मुहूर्तमपि दुःखिता॥१३॥

‘तभी तो मैं श्रीराम के दर्शन से वञ्चित तथा इन क्रूर राक्षसियों द्वारा पीड़ित होने पर भी यहाँ मुहूर्तभर भी जी रही हूँ॥ १३॥

एषाल्पपुण्या कृपणा विनशिष्याम्यनाथवत्।
समुद्रमध्ये नौः पूर्णा वायुवेगैरिवाहता॥१४॥

‘मैंने पूर्वजन्म में बहुत थोड़े पुण्य किये थे, इसीलिये इस दीन दशा में पड़कर मैं अनाथ की भाँति मारी जाऊँगी। जैसे समुद्र के भीतर सामान से भरी हुई नौका वायु के वेग से आहत हो डूब जाती है, उसी प्रकार मैं भी नष्ट हो जाऊँगी॥ १४ ॥

भर्तारं तमपश्यन्ती राक्षसीवशमागता।
सीदामि खलु शोकेन कूलं तोयहतं यथा॥१५॥

‘मुझे पतिदेव के दर्शन नहीं हो रहे हैं। मैं इन राक्षसियों के चंगुल में फँस गयी हूँ और पानी के थपेड़ों से आहत हो कटते हुए कगारों के समान शोक से क्षीण होती जा रही हूँ॥ १५ ॥

तं पद्मदलपत्राक्षं सिंहविक्रान्तगामिनम्।
धन्याः पश्यन्ति मे नाथं कृतज्ञं प्रियवादिनम्॥१६॥

‘आज जिन लोगों को सिंह के समान पराक्रमी और सिंह की-सी चाल वाले मेरे कमलदललोचन, कृतज्ञ और प्रियवादी प्राणनाथ के दर्शन हो रहे हैं, वे धन्य हैं॥ १६॥

सर्वथा तेन हीनाया रामेण विदितात्मना।
तीक्ष्णं विषमिवास्वाद्य दुर्लभं मम जीवनम्॥१७॥

‘उन आत्मज्ञानी भगवान् श्रीराम से बिछुड़कर मेरा जीवित रहना उसी तरह सर्वथा दुर्लभ है, जैसे तेज विष का पान करके किसी का भी जीना अत्यन्त कठिन हो जाता है॥१७॥

कीदृशं तु महापापं मया देहान्तरे कृतम्।
तेनेदं प्राप्यते घोरं महादुःखं सुदारुणम्॥१८॥

‘पता नहीं, मैंने पूर्वजन्म में दूसरे शरीर से कैसा महान् पाप किया था, जिससे यह अत्यन्त कठोर, घोर और महान् दुःख मुझे प्राप्त हुआ है ? ॥ १८॥

जीवितं त्यक्तुमिच्छामि शोकेन महता वृता।
राक्षसीभिश्च रक्षन्त्या रामो नासाद्यते मया॥१९॥

‘इन राक्षसियों के संरक्षण में रहकर तो मैं अपने प्राणाराम श्रीराम को कदापि नहीं पा सकती, इसलिये महान् शोक से घिर गयी हूँ और इससे तंग आकर अपने जीवन का अन्त कर देना चाहती हूँ॥ १९॥

धिगस्तु खलु मानुष्यं धिगस्तु परवश्यताम्।
न शक्यं यत् परित्यक्तुमात्मच्छन्देन जीवितम्॥२०॥

‘इस मानव-जीवन और परतन्त्रता को धिक्कार है, जहाँ अपनी इच्छा के अनुसार प्राणों का परित्याग भी नहीं किया जा सकता’ ॥ २०॥

इत्याचे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये सुन्दरकाण्डे पञ्चविंशः सर्गः ॥२५॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आपरामायण आदिकाव्य के सुन्दरकाण्ड में पचीसवाँ सर्ग पूरा हुआ।२५॥


Spread the Glory of Sri SitaRam!

Shivangi

शिवांगी RamCharit.in को समृद्ध बनाने के लिए जनवरी 2019 से कर्मचारी के रूप में कार्यरत हैं। यह इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी में स्नातक एवं MBA (Gold Medalist) हैं। तकनीकि आधारित संसाधनों के प्रयोग से RamCharit.in पर गुणवत्ता पूर्ण कंटेंट उपलब्ध कराना इनकी जिम्मेदारी है जिसे यह बहुत ही कुशलता पूर्वक कर रही हैं।

One thought on “वाल्मीकि रामायण सुन्दरकाण्ड सर्ग 25 हिंदी अर्थ सहित | Valmiki Ramayana Sundarakanda Chapter 25

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

उत्कृष्ट व निःशुल्क सेवाकार्यों हेतु आपके आर्थिक सहयोग की अति आवश्यकता है! आपका आर्थिक सहयोग हिन्दू धर्म के वैश्विक संवर्धन-संरक्षण में सहयोगी होगा। RamCharit.in व SatyaSanatan.com धर्मग्रंथों को अनुवाद के साथ इंटरनेट पर उपलब्ध कराने हेतु अग्रसर हैं। कृपया हमें जानें और सहयोग करें!

X
error: